मोदी सरकार के शपथग्रहण समारोह से कई बड़े संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र माूेदी की सरकार का दूसरा शपथग्रहण समारोह कई मायने में ऐतिहासिक है व राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय राजनीति को एक बड़ा संदेश दे गया है। यह शपथ ग्रहण समारोह कई मायने में बहुत अलग रहा है। प्रधानमंत्री के शपथग्रहण समारोह में इस बार सरकार की भविष्य की विदेश नीति, अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर सरकार की आगामी क्या रणनीति होने जा रही है का साफ संकेत मिल रहा हेै। साथ ही भारतीय जनता पार्टी व राजग गठबंधन की आंतरिक राजनीति में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होने जा रही है या फिर क्या बड़े बदलाव होने जा रहे हैं इन सभी बातों के साफ संकेत मिल गये हैं। नयी सरकार के शपथ समारोह से ही कई बातें बहुत साफ हो गयी हैं। शपथ समारोह में जिन अतिथियों को आमंत्रित किया गया व जो मेहमान आये हैं उनसे भी भविष्य की रणनीति साफ हो गयी है।
सबसे बड़ी बात यह रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ लेने से पहले अपने सभी सांसदों के साथ अटल जी की समाधि पर पहंुचे और फिर वार मेमोरियल भी गये तथा शहीदों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर उन्होंने यह साबित कर दिया कि आगामी पांच वर्षो में आतंकवाद के खिलाफ बहुत बड़ी व निर्णायक कार्यवाही हो सकती है। सरकार अभी से यह सुनिश्चित कर रही है कि आगामी पांच सालों में सेना का मनोबल किसी भी प्रकार से नहीं गिरने दिया जायेगा। पीएम मोदी ने सबसे पहले गाँधी को श्रद्धासुमन अर्पित किये। इन सभी कदमों से पीएम मोदी ने देशवासियों राजनैतिक दलों व विदेशी मित्रों को भी अपना सधा हुआ संदेश दे दिया है कि अबकी बार पीएम मोदी के नेतृत्व में बनने वाली सरकार पहले से भी अधिक मजबूत होकर आ रही है।
शपथ समारोह में सबसे बड़ा संदेश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को न बुलाकर दिया गया है। पिछली बार शपथ ग्रहण समारोह अपने समकक्ष नवाज शरीफ को जिस बात को लेकर उनकी आलोचना आज तक की जा रही है। अबकी बार पीएम मोदी ने उस बात को ध्यान में रखते हुए इमरान खान को अभी से ही कड़ा संदेश दे दिया है जिसके कारण पाकिस्तान में बहुत खलबली मची हुई है। पाकिस्तानी मीडिया में इस बात को लेकर बहुत चर्चा हो रही है तथा वहां के विरोधी दलों ने इमरान खान के खिलाफ अपने तेवर भी कड़े कर दिये हैं तथा वहां का विपक्ष उनको अपना आईना दिखा रहा है। ऐतिहासिक बहुमत के साथ सरकार मेें वापस आने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी किसी भी प्रकार के दबाव में नहीं आने वाली है हालांकि उसने यह भी साबित कर दिया है कि वह अपनी ओर से गठबंधन के किसी भी सहयोगी दल को नाराज नहीं करेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार के शपथग्रहण समारोह के दौरान पश्चिम बंगाल में राजनैतिक हिंसा के शिकार भाजपा के 54 कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी बुलाया गया जिससे बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बुरी तरह से नाराज हो गयीं और पहले तो उन्होंने शपथग्रहण समारोह में आने को कहा था लेकिन बाद में मना कर दिया। ममता बनर्जी का आरोप है कि भारतीय जनता पार्टी उन पर राजनैतिक हत्याओं के झूठे आरोप लगा रही हैं। अब वह बंगाल में एक बार फिर तृणमूल कार्यकर्ता की हत्या का आरोप लगाते हुए धरना – प्रदर्शन की राजनीति पर उतर आयी हैं। पुलवामा के शहीद जवानों के परिवारों को भी राष्ट्रपति भवन बुलाकर पीएम मोदी ने साफ संदेश दिया है कि भारत न पुलवामा भूला है और न ही कभी भूलेगा। अभी भी पुलवामा की साजिश को अंजाम तक पहंुचाने वाले लोग पाकिस्तान मेें पूरी सक्रियता के साथ अपना काम कर रहे हैं तथा वहां पर बैठे आतंकी संगठनों के आका बालाकोट का बदला लेने की तैयारी में बैठे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल शपथ ग्रहण समारोह से कई और बड़े आंतरिक राजनैतिक संदेश गये हैं। नये मंत्रिमंडल के गठन के बाद भाजपा में अटल-आडवाणी युग का पूरी तरह से समापन हो गया है। अब सरकार से लेकर संगठन तक का ताना-बाना भविष्य की राजनीति व आवश्यकतओं के हिसाब से बदलाव किया गया है। नया मंत्रिमंडल युवा, ऊर्जावान तथा काम के बोझ को सह सकने वाला बनाया गया है। यदि मोदी सरकार एक और दो की तुलना की जाये तो भाजपा के फायरब्रांड वित्त मंत्री अरुण जेटली और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अपने स्वास्थ्य कारणों से मंत्रिमंडल से बाहर हो गयी हैं।
सुषमा जी को हिंदीप्रेम के लिए अवश्य याद किया जायेगा। वह संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को मान्यता दिलाने के लिए बहुत प्रयास कर रहीं थीं तथा अब देखना है कि उनका यह प्रयास कब और किस प्रकार से रंग लाता है। मोदी जी की नयी सरकार में पूर्व विता मंत्री अरुण जेटली की आर्थिक नीतियां अब नहीं दिखायी देंगी। वहीं दूसरी ओर पूर्व कृषि मंत्री राधामोहन सिंह भी इस बार नहीं होंगे। पिछली बार कृषि मंत्री के पद पर राधामोहन सिंह कोई विशेष छाप नहीं छोड़ पाये थे तथा किसानों की समस्याओं पर सरकार को कई बार असहज होना पड़ा था। यह बात तो तय है कि अबकी बार मंत्रिमंडल का गठन करते समय पीएम मोदी व अमित शाह की जोड़ी ने कई चीजों को बहुत ध्यान से परखा व देखा है तब जाकर मंत्रिमंडल का गठन किया है।
मंत्रिमंडल गठन में सबसे बड़ा व चैंकाने वाला नाम भारत अमेरिका परमाणु डील में मुख्य भूमिका अदा करने वाले प्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक तथा भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे एस जयशंकर का है। यह एक बहुत हैरान करने वाला व्यक्ति विदेश मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है। एक प्रकार से मोदी जी के नये मंत्रिमडल में अनुभव पेशेवराना गुण, वरिष्ठता, विशेषज्ञता, जातिगत और लैंगिक संतुलन तथा गठबंधन धर्म के बीच समन्वय साधने की अहम कोशिश की गयी है। साथ ही आगामी दिनों में जिन राज्यों में राजनैतिक उथल-पुथल होने जा रही है तथा जिन राज्यों में अभी भाजपा को और अधिक मजबूत करना है, उन सभी राज्योें को मंत्रिमंडल में जगह दी गयी है। हालांकि मंत्रिमंडल में महिला मंत्रियों की संख्या में इस बार कमी आ गयी है, लेकिन इस बात की संभावना प्रबल दिख रही है कि आगे आने वाले समय में मंत्रिमंडल का फेरबदल व विस्तार संभव है।
भाजपा ने जद (यू) व अपना दल की मांगों के आगे घुटने नहीं टेके और यह संकेत दे दिया है कि वह अब किसी भी दबाव में नहीं आने जा रही है। ऐसा लग रहा हेै कि चुनाव के पूर्व समझौता करते समय बिहार के मख्यमंत्री नीतिश कुमार ने समझा होगा कि चुनावो के बाद लोकसभा में एनडीए की संख्या 250 के आसपास ही रहेगी, तब हम लोग मिलकर भाजपा से अपने हिसाब से लेन-देन कर सकेंगे। लेकिन देश की जनता अब नेताओं से अधिक होशियार हो गयी है। जनता ने मोदी जी को अकेले ही 303 सीटें देकर अजेय सरकार चलाने का बहुमत दे दिया है। यह तो उनका बडप्पन है कि वह सहयोगी दलों को उनकी सदस्य संख्या के आधार पर मंत्री बना भी रहे हैं। आखिरकार राजग के लगभग सभी सहयोगी मंत्रिमंडल में जगह पा भी गये हैं। इस समय नीतिश जी का नाटक करना उनकी भविष्य की राजनीति के लिए नये व बहुत गहरे खतरे का संकेत भी है नीतिश जी के पास अभी सुधरने का अवसर है।
— मृत्युंजय दीक्षित