कविता

विरह के गीत

काली-काली हे बदरिया
पिया से जा के क ह संदेशिया
ऐसे में, सजन काहे हैं परदेशिया।
कैसे कहू मैं काली बदरिया
पिया के संदेश ना’ नाही कोई खबरिया
काली काली बदरिया▪▪▪▪▪
जब जब हो, चमकत बिजूरिया
तन-मन में उठत हिलोरिया
काली-काली बदरिया
पिया से जा के क ह संदेशिया
ऐसे में, सजन काहे हैं परदेशिया।
विरह की रात काली,काली है बदरिया
जीवन की साज खाली, खाली है नगरिया
जब से पिया गये है परदेशिया
अपनी तो जीवन की न कोई डगरिया
काली -काली बदरिया
पिया से जा के क ह संदेशिया
ऐसे में, सजन काहे है परदेशिया।
— आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)