कविता

वो कर ही दिखलाएगा

कोशिश करना मुश्किल​
है नामुमकिन कुछ न हो पाएगा ।

राह मिले ना भले तुझे
पर पथ पे आगे बढ जाएगा।

कांटो की परवाह को​
छोड़ फूलों को चुनता​
जाएगा ।

सागर जैसा आगे बढ़ता​
तू निरंतर ही बहता​
जाएगा ।

बीज लगाया है जैसा​
तूने वैसा ही फल तू​
पायेगा ।

जो बीत गया सो चला​
गया अब नया सवेरा​
आएगा ।

मुझे यकीन है तुझ पर​
कि तू खाली हाथ न​
आएगा ।

कहते हैं सब इस बार​
यही कि वो कर ही​
दिख लाएगा ।

आशीष तेरे संग में​
है सबका तू जीत के​
ही घर आएगा ।

शालू मिश्रा

शालू मिश्रा नोहर

पुत्री श्री विद्याधर मिश्रा लेखिका/अध्यापिका रा.बा.उ.प्रा.वि. गाँव- सराणा, आहोर (जिला-जालोर) मोबाइल- 9024370954 ईमेल - [email protected]