कविता

मासूम बच्चे

साहब, मैंने  दर्द  पढ़ा  नहीं,
देखा  है,  मैंने  भूखे  प्यासे
बच्चों   को  रोते   देखा  है।
मैंने  स्टेशन   पर     उनको ,
बचपन    खोते    देखा  है।
ये साहब ,ये साहब दिन भर
चिल्लाते हैं,  जूते चप्पल से
लेकर गाली  तक  खाते  हैं।
तब  जाकर  कहीं शाम  को
ये   बच्चें   खाना   खाते  हैं।
लोगों  को  आकर्षित  करने
के लिए  ,ये  गाना  गाते   हैं।
इनके   सारे   सपने   स्टेशन
तक     ही    रह   जाते    हैं।
फुटपाथ  ही इनका   घर   है,
फुटपाथ पे ही ये सो जाते  हैं।
अपनी    पीड़ा    ये    मासूम ,
नहीं   किसी  से  कह पाते हैं।
हाथ   फैलाये  ,ये   साहब, ये
साहब,दिन भर ये चिल्लाते हैं।

— विकास शाहजहाँपुरी

विकास शाहजहाँपुरी

नाम-विकास सिंह, पिता का नाम-ओमवीर सिंह जन्मतिथि-15अगस्त1996 पता-शाहजहाँपुर ,(उप्र) पिन न0 242001 शिक्षा-बी0ए हिंदी साहित्य,अर्थशास्त्र से, वर्तमान में,:- आर्मी सोल्जर , विभिन्न समाचार पत्र,पत्रिकाओं में, प्रकाशित 200 से अधिक रचनायें,, लेखन की शुरुआत,,12 वर्ष की आयु से, प्रिय कवी:-जयशंकर प्रसाद। Email ID [email protected] मो0न0 9451721001 WhatsApp n0 9875542047 मेरी सफलता का सूत्र,, दुनियां मेरे बारे में क्या सोचती है, मैं ये नहीं सोचता हूँ, मुझे जो अच्छा लगता है, मैं वो ही सोचता हूँ।