आकृति
……आकृति……….
मैं एक क्षण भी दूर नहीं हूँ,
मैं तुझमे ही ,हरपल रहता हूँ,
मैं तुम्हारी कलाई का गजरा हूँ,
मैं तुम्हारी मांग का सिंदूर हूँ,
मैं तुम्हारे माथे का चन्दन हूँ,
मैं तुम्हारे हाथों का कंगन हूँ,
मैं तुम्हारे ह्र्दय का कैदी हूँ,
मैं तुम्हारे हाथों की मेहंदी हूँ,
मैं तुम्हारी पायल की झंकार हूँ,
मैं तुम्हारी सांसों का आधार हूँ,
मैं तुम्हारे पैरों पर लगा रंग हूँ,
मैं जीवन भर,तुम्हारे ही संग हूँ।
- :-विकास शाहजहाँपुरी(उ0प्र0)