काबिल भी नहीं
सुन तो जरा यार वो तेरे काबिल भी नहीं है।
खड़े रहो आप हम कोई ,साहिल भी नहीं है।।
क्यों तू इतना दूर भागता रहता है उससे!!
तेरी महबूबा है वो कोई कातिल भी नहीं है।
तू अकेला अपने ख़्वाब देखता रहे उसके साथ,
क्योंकि हम लोग तो, इसमें शामिल भी नहीं है।
इस जहां में वो तुझ से ही मोहब्बत करती है।
क्योंकि उसे कोई दूसरा, हासिल भी नहीं है।
ले आ अपने इन हाथों में कुछ गुलाब वाले फूल,,
क्यों इतने नखरे करता है वो जाहिल भी नहीं है।
जो तुझे कहना है उससे ,कह दे ए मेरे खालिद ,
कह दूंगा मेरा इतना कमजोर,दिल भी नहीं है।
— खालिद खान इमरानी