बेटी बचाओ
।। बेटी बचाओ।।
कलियां ही ग़र तुम तोड़ोगे,
तो पुष्प कहाँ से लाओगे।
अपना सूना आँगन फिर,
तुम किससे महकाओ गे।
क्यों निर्मम हत्याएँ तुम,
अविकसित कलियों की करते हो।
क्यों नन्हें नन्हें पग चिन्हों से,
तुम गलियां सूनी करते हो।
ये कलियां ही विकसित ,
होकर एकदिन पुष्प बनेंगी।
किसी कुंवारे यौवन के संग,
जब ये सुन्दर सृष्टि रचेगी।
सारा अम्बर पुनमी होगा,
चन्दा मन्द मन्द मुस्कुरा येगा।
तारों की जगमग होगी,
जब इनका प्रीतम आयेगा।
साकार कल्पना करने वाली,
ये सब रंग रलियां हैं।
सृष्टि कि रचना करने वाली,
ये नाज़ुक कलियां हैं।
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विकास शाहजहाँपुरी(उ0प्र0)