कुंडलिया
‘”कुंडलिया”
बालक नन्हा धूल में, जीने को मजबूर
लाचारी से जूझता, इसका कहाँ कसूर
इसका कहाँ कसूर, हुजूर वस्र नहिं दाना
माता-पिता गरीब, रहा नहिं काना नाना
कह गौतम कविराय, प्रभो तुम सबके पालक
बचपन वृद्ध समान, सभी हैं तेरे बालक।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी