सामाजिक

यदि आपको ऐसा लगता है कि आपको अपने ही घर में सकून नही तो कुछ ऐसा करके देखें

अक्सर ऐसा भी होता है कि जिसने सारा घर खड़ा किया होता है, उसे अपने ही घर में मालिक होते हुये भी सकून नहीं होता। दूसरों के सामने, अपने घर के सदस्यों की शिकायत करते नजर आता हैं, लोग सुनते हैं, पर समाधान किसी के पास नहीं होता। वे आधा एक घंटा उसकी बात सुन सकते हैं, परन्तु उसके प्श्चात वह कुछ नहीं करते। कारण कुछ ऐसा ही हालत उनके अपने घर में भी होती है। वापिस उसको अपने घर और जिनसे शिकायत होती है, उन्हीं के पास जाना पड़ता है, चाहे उसे बुरा लगे या अच्छा।
एक पुस्तक पढ़ रहा था, लेखक ने एक उपाय सुझाया था। उसका कहना था- वैसे तो यह दुनिया ही सराय है जहां व्यक्ति कुछ पल के लिए मेहमान बनकर आता है, तो क्यों न अपने घर में भी मेहमान बन कर रहेें ?
पहली बात, जब आप अपने बनाये घर में ही अपने आप को मेहमान समझते हैंैं तो इस बात का अहंकार खत्म होने लगता है कि मैं इस घर का मालिक या मालकिन हूं। इससे भी अच्छा है कि हम यूं समझेे कि यह सब तो ईश्वर का है जो उसने मुझे प्रयोग के लिए दिया था। इस सच्चाई को स्वीकार कीजिये कि यह घर तो रहेगा परन्तु मैं नहीं रहूंगा। हे ईश्वर, आपने मुझे सर ढकने की जगह दी है, आपका कोटि-कोटि धन्यवाद। यह विनम्रता हृदय की खुशी को बढ़ाती है। व्यक्ति का हृदय से मन से खुश रहना बहुत बड़ी बात है।
जब आप घर में मेहमान बन कर रहेंगे तो घर में अपना प्रभुत्व दिखाने का प्रश्न ही खत्म हो गया। पहले जब आप अपने आपको घर का मलिक मानते थे, तो यह भी उम्मीद करते थे कि जो भी घर में हो वह मुझसे पूछकर ही हो। जब सदस्य मनमानी करते, तो स्वाभाविक तौर पर आपको क्रोध व खीज आती थी, परन्तु अब तो आप मेहमान है, मेहमान से पूछकर तो काम किये नहीं जाते, इसलिए आपको गुस्सा आने या खीजने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। जब आप को क्रोध व रोश नहीं रहेगा तो स्वभाविक है कि आप प्रसन्न रहेंगे व ऐसी हालत में स्वास्थ्य पर भी अनुकूल असर पड़ेगा और आयु में वृद्धि स्वाभाविक है। जरा सोचिये कि यह कितना बड़ा फायदा है!
मेहमान सदैव विनम्र रहता है, यदि उसे कुछ अच्छा नहीं लगता तो भी प्रकट नहीं करता। जो उसे खाने को दिया जाता है, खा लेता है व खाने के बाद प्रशंसा के कुछ शब्द भी बोलता है, घन्यवाद करता है जो कि शायद जब आप एक मालिक के रूप में नहीं करते, क्योंकि यह सब तो आपने अपना अधिकार माना। अब आप पहले की तरह अपनी पसन्द को दूसरों पर ठोंसने की कोशिश नहीं करते और ना ही हर बात में टोकते हैं। जब हम प्रशंसा करना और धन्यवाद करना अपनी आदत बना लेते हैं, दूसरों की पसन्द और विचारों को स्थान देते हैं तो पारस्परिक सम्बन्धों का सुधरना स्वाभाविक हो जाता है। यह मानसिक शांति में बहुत बड़ी भूमिका निभाती है।
एक और परिवर्तन करें, बिन मांगे अपनी राय भी न दें। जैसे मेहमान सिर्फ देखता ही है और कहता नहीं जब तक आग्रह न किया जाये, वैसे ही अपने आपको बना लें। हां जब आपकी राय मांगी जाय तो ईमानदारी से दें।
जैसे मेहमान घर में सबका आदर ही करता है चाहे उस घर का नौकर ही क्यों न हो, वैसे ही सबका आदर करना अपनी आदत बना लें। सबसे बड़ी बात इस चिन्ता से मुक्त हो जायें कि घर कैसे चलेगा। जब आप इस दुनिया में नहीं आये थे तब भी यह संसार चल रहा था और विश्वास कीजिये जब आप चले जायेंगे तब भी ऐसा ही चलेगा। ईश्वर पर विश्वास करते हुए लोभ, मोह, क्रोध व अहंकार से मुक्त होकर जीवन काटेंगे इसी में आप, आपके परिवार व समाज का सुख है।

— भारतेन्दु सूद

भारतेंदु सूद

आर्यसमाज की विधारधारा से प्रेरित हैं। लिखने-पढ़ने का शौक है। सम्पादक, वैदिक थाट्स, चण्डीगढ़