समसामयिक दोहे
(1)
दुर्घटना पथ पर हुई, चोट लगी गम्भीर ।
देख देख सब चल दिये, जागा नही जमीर।।
(2)
कुमकुम विवश पुकारती, कौन बढ़ाये हाथ ।
बैरी सब जग ही हुआ, छोड़ चले सब साथ ।।
(3)
मृतक सरीखी चेतना, है पशुवत व्यवहार ।
अहंकार मन मे बसा, भूले सब उपकार ।।
(4)
रहते खुद में मस्त सब, जाए भाड़ समाज ।
कलुषित है मन भावना, दूषित सारे काज ।।
(5)
बची नही संवेदना, नहीं अश्रु की धार ।
बीच सड़क पर मर गया, तड़प-तड़प लाचार ।।
(6)
डरें नहीं भगवान से, चले उड़ाते धूल ।
सब पर रखता है नज़र, शंकर पाणि त्रिशूल ।।
(7)
अंधकार में खो गया, दया, धर्म, ईमान ।
अर्थ खोजना है व्यर्थ, पशु सम है इंसान ।।
(8)
पीर पराई। न। सुने, सुने न चीख पुकार ।
हृदय कटुक क्यों हो गए, घृणित हुआ व्यवहार ।।
— रीना गोयल