मुक्तक/दोहा

समसामयिक दोहे

(1)
दुर्घटना पथ पर हुई, चोट लगी गम्भीर ।
देख देख सब चल दिये, जागा नही जमीर।।

(2)
कुमकुम विवश पुकारती, कौन बढ़ाये हाथ ।
बैरी सब जग  ही हुआ, छोड़ चले सब साथ ।।

(3)
मृतक सरीखी चेतना, है पशुवत व्यवहार ।
अहंकार मन मे बसा, भूले सब उपकार ।।

(4)
रहते खुद में मस्त सब, जाए भाड़ समाज ।
कलुषित है मन भावना, दूषित सारे काज ।।

(5)
बची  नही  संवेदना,  नहीं   अश्रु की  धार  ।
बीच सड़क पर मर गया, तड़प-तड़प लाचार ।।

(6)
डरें  नहीं  भगवान  से,      चले  उड़ाते  धूल ।
सब पर रखता है नज़र, शंकर पाणि त्रिशूल ।।

(7)
अंधकार में खो गया, दया, धर्म, ईमान ।
अर्थ खोजना है व्यर्थ, पशु सम है इंसान ।।

(8)
पीर पराई।  न।  सुने,   सुने न  चीख   पुकार  ।
हृदय  कटुक क्यों हो गए, घृणित  हुआ व्यवहार ।।

— रीना गोयल

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर