पुस्तक समीक्षा
काव्य संग्रह का नाम-‘ठाकुर का ठहाका’
विधा-हास्य और व्यंग्य
संस्करण -द्वितीय
प्रकाशक-श्री दुर्गा पुस्तक भंडार इलाहाबाद
रचनाकार-ठाकुर इलाहाबादी
पुस्तक समीक्षक- आशीष तिवारी निर्मल
हमारा देश अनेकता में एकता का विश्व के समस्त मानव जाति के लिए एक मिसाल पेश करता है। हमारे भारतीय समाज में घर-परिवार के भीतर नैतिकता का मनोरम संसार रचा बसा है। लेकिन आधुनिकता की इस दौड़ में आगे निकलने की होड़ में कहीं न कहीं किसी न किसी कारण से यह मनोरम संसार बिखरता जा रहा है। कवि श्री ठाकुर इलाहाबादी का हास्य व्यंग्य से ओत-प्रोत काव्य संग्रह ‘ठाकुर का ठहाका’ गत दिवस अमेठी में आयोजित कवि सम्मेलन के दौरान मुझे भेंट स्वरूप पढ़ने को मिला। इस पुस्तक में कवि श्री ठाकुर इलाहाबादी ने अपने ही परिवेश के आस-पास की विसंगतियों को व्यंग्य के माध्यम से मुखरता के साथ प्रकट करते हैं।उनके द्वारा समाजिक, राजनीतिक,धार्मिक विसंगतियों को गंभीरता से परखा गया है।उन्ही विसंगतियों का एक कुशल निचोड़ है पुस्तक ‘ठाकुर का ठहाका’देश में गरीबों की दुर्दशा के प्रति सियासत में बैठे रहनुमाओं पर अपना क्रोध व्यक्त करते हुए ठाकुर इलाहाबादी ने लिखा-
खाने के लिए चाहिये , राशन गरीब को
सुनवा रहे हो आप तो भाषण गरीब को।
जिस तरह से समाज में मेहनतकश लोगों की कमी दिखाई देने लगी है, लोग तेजी से सुविधाभोगी होते जा रहे हैं, कोई भी अब खेतों में काम नहीं करना चाहता हर कोई बैठे-बैठे बस खाना चाहता है इस पर रचनाकार ने कुछ इस तरह से कटाक्ष किया-
खेतीबारी होती थी बच्चों को बतलायेंगे
पुरातत्व विभाग खोज करके अनाज लायेंगे।
काव्य संग्रह में देश के प्रति चिंतन की गहन पंक्तियां लिखते हुए कवि ठाकुर इलाहाबादी लिखते हैं कि-
खण्डर बता रहे हैं, हवेली जरूर थी
दुल्हन यहाँ भी नई, नवेली जरूर थी।
सब खो गये हैं जुल्मी,जमाने की गर्त में
सोने की कोई चिड़िया, अकेली जरूर थी।
देश में इस समय नकलीपन की दौर हावी है लोग परिधान से लेकर खानपान और कार्यों में एक दूसरे की नकल कर ही कर रहे हैं इस पर कवि ने कुछ इस तरह से कलम चलाते हुए लिखा है-
अल्लाह या भगवान बचाये राह दिखाने वालों से,
इसीलिए हर जगह लिखा है, सावधान नक्कालों से।
जेब में धरना देकर बैठी कंगाली और कड़कीपन को चुटीले अंदाज में लिखते हुए कहते हैं-
देखा तो हमने यारों का, रंग दिवाली वाला है
घर वालों की दिवाली है, ठाकुर का दिवाला है।
कवि ठाकुर इलाहाबादी आयुर्वेद रत्न हैं ।उन्होंने ने एम. ए.शिक्षा की प्राप्त की हुई है। प्रयागराज जिले के अंतर्गत शंकरगढ़ के करीबी ग्राम कपड़ौरा के मूल निवासी हैं। पत्नी का देवासहान तब हुआ जब उनके बच्चे बहुत ही छोटे थे ऐसे में ठाकुर इलाहाबादी पूरी तरह से टूट चुके थे। किंतु हिम्मत नहीं हारते हुए बच्चों के लालन पालन के साथ ही ठाकुर इलाहाबादी बिना किसी सम्मान की भूंख बिना किसी लालच के साहित्य और माँ हिंदी की सेवा में लगे रहे।
ठाकुर इलाहाबादी द्वारा रचित काव्य ग्रंथ देश और समाज को नई दिशा और दशा देने में सहायक सिद्ध हो इन्ही मंगलकामनाओं के साथ बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ।
समीक्षक — आशीष तिवारी निर्मल