मेरे पापा
क्या कहूँ आपके लिए,
शब्द कम हो गए आज,
कभी आता गुस्सा है,
कभी आता है प्यार,
आज भी याद है सब कुछ,
जो जो भी हुआ बचपन में,
कितना कठोर रहते थे ,
कभी मदद नही करते,
जब जब पुकारा आपको,
आप नही आये मदद को,
खुद करो सब अपने से,
कोशिश कर खुद करते ,
तब खुश होते हम सफलता पर,
मंद मंद आप भी मुस्काते थे,
हर राह जो होती कठिन ,
उस पर आगे हमकों चलाते,
आज उस बचपन की ठोकर से,
जीवन की हर ठोकर छोटी है ,
कोई भी परेशानी हो समस्या हो,
कदम नही रुकते है हमारे,
चलते चलते , लड़ते लड़ते,
मंजिल मिल जाती खुशी से ,
आज भी आप पीछे हो खड़े,
जीवन की राह पर हम आगे
जितना लिखूं कम है ,
” पापा” जीवन का सार हो आप ।।
सारिका औदिच्य