कविता

हाकलि छंद

–हाकलि छंद – हाकलि छंद में प्रत्येक चरण में तीन चौकल अंत में एक गुरु के संयोग से १४ मात्राएँ होती है l चरणान्त में s, ss ,।। एवं सगण l ls आदि हो सकते हैं l कतिपय विद्वानों छन्दानुरागियों का मत है चौदह मात्रा में यदि प्रत्येक चरण में तीन चौकल एवं एक दीर्घ [गुरु ] न होने पर उस छंद को हमें मानव छंद का स्वरुप समझना चाहिए l
हाकलि छंद -का उदाहरण
लक्ष्मण ने सोचा मन में l
“जानें देंगी ये वन में?
प्रभु इनको भी छोड़ेंगे l
तो किस धन को जोड़ेंगे?[साकेत चतुर्थ सर्ग मैथिलीशरण गुप्त]
——————-मानव छंद ———————————————————–
उठी न लक्ष्मण की आँखें l
जकड़ी रही पलक-पाँखें।
किन्तु कल्पना घटी नहींl
उदित उर्मिला हटी नहीं।=मैथिलीशरण गुप्त -साकेत

“हाकलि छंद”

माना सबने गर्मी है, सुबह शाम तो नरमी है।
पोछ पसीना दुपहर है, एसी कूलर घर-घर है।
तनिक ख्याल इसका रखना, मटकी में जल भी भरना।
पंछी प्यासे आते है, बिनु पानी अकुलाते हैं।।

पेड़ प्रचुर नहीं दिखते, ठेला पर फल हैं बिकते।
राह बटोही तरु गिनते, छाया नीम नहीं मिलते।
यदा-कदा गर छाँह मिली, डाली बैठी गैर कली।
नहीं घोसला घर मिलते, बिना जमीं कब गुल खिलते।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ