गीतिका
मापनी -2212 122 2212 122, समांत- अना, स्वर, पदांत- कठिन लगा था….. ॐ जय माँ शारदा!
“गीतिका”
अंजान रास्तों पर चलना कठिन लगा था
थे सब नए मुसाफिर मिलना कठिन लगा था
सबके निगाह में थी अपनों की सुध विचरती
घर से बिछड़ के जीवन कितना कठिन लगा था।।
आसान कब था रहना परदेश का ठिकाना
रातें गुजारी गिन दिन गिनना कठिन लगा था।।
कुछ दिन खले थे मौसम पानी अजीब पाकर
था दर्द का समय वह कटना कठिन लगा था।।
जब याद आती घर की तो गाते थे दिलासा
माँ से भी झूठ बोला सच कहना कठिन लगा था।।
जब लौट घर को आया वापस न प्यार पाया
बदली थी सूरतें मन मिलना कठिन लगा था।।
गौतम बिला वजह के परेशान हो गया मन
खुद के मीनार पर जब चढ़ना कठिन लगा था।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी