बुजुर्ग
घर में ऐसे लगे बुजुर्ग,
जैसे शहर मे दुर्ग,
अटल, अविचल, विशाल,
ऐसे ही बुजुर्ग होते उसूलो की मिशाल,
दुर्ग शहर तो बुजुर्ग घराने की शान,
दोनो का ही महफूज रखना है काम,
दुर्ग इतिहास की धरोहर, बुजुर्ग घर की रौनक,
दोनो ही समेटे अपने मे कई अनुभव,
दुर्ग के दिल नहीं होता, इसलिए खण्डर होने का
दर्द नहीं होता,
बुजुर्ग का दिल है, इसलिय घर के बबण्डर से व्याकुल है,
राजा की फतेह दुर्ग का अहं,
संतान की फतेह बुजुर्ग का अहं
घर मे …….
दुर्ग को देखने आये देशी -विदेशी सै लानी,
पर बुजुर्ग को कोई नहीं देखता यह है हैरानी,
बुजुर्ग रहे वृध्दा श्रमो मे,
यह है विपदा,
और दुर्ग कहलाता राष्ट्रिय संपदा,
घर मे ……………
— शिल्पी पचौरी