कविता

योग

तन का आधार  है योग
इसे अपनाकर न बढे रोग
स्वास्थ एकाग्रचित निर्मल
कोमल शुद्ध तन न हो गंदा।
जीवन की अनमोल क्षण दो
ध्यान मग्न रहो और रहो चंगा।
आत्म शुद्धि बढे बुद्धि
चंचल मन बस में रहे
पास न आवे कुबुद्धि।
है पौराणिक पर गुणो से भरा
कई रोगो की यह औषधि भी
टेक्स लेना देना नही
खर्च कोई लगता नही
कई प्रकार है करने को
समय थोडा ही लगने को।
अपनाकर जीवन में सारे
अपना जीवन करो न्यारे।
आशुतोष

आशुतोष झा

पटना बिहार M- 9852842667 (wtsap)