गीतिका/ग़ज़ल

ख़ामोश लफ्ज़

हर कदम पर साथ निभाने की कसमें खाई तुमने।
जो वादे किए सब भूलकर, रस्में न निभाई तुमने।
हमने सबकुछ सह लिया जितने भी किये सितम,
जितने भी अरमान थे सारे, धूल में मिलाई तुमने।
इससे तो तन्हाई अच्छी काश भरोसा ना होता,
यादों को दिल में बसाकर क्यों की जुदाई तुमने।
जाने कितने आँसू पोंछे रातों की नीदें खोकर,
जख्म बने नासूर मेरे क्यों की रुसवाई तुमने।
विश्वास किया तुम पर मगर बेवफा तुम निकले,
वफ़ा किया था हमने, क्यों की बेवफाई तुमने।
ये कैसा मोड़ जिंदगी का न हम है और न तुम,
प्यार में धोखा मिला हमें, बस दी तन्हाई तुमने।
खामोश हैं फिजायें, खामोश हैं मेरे लफ्ज़ “सुमन”
धोखे खाये जीवन में बहुत, हस्तियां मिटाई तुमने।
सुमन अग्रवाल “सागरिका”
      आगरा

सुमन अग्रवाल "सागरिका"

पिता का नाम :- श्री रामजी लाल सिंघल माता का नाम :- श्रीमती उर्मिला देवी शिक्षा :-बी. ए. ग्रेजुएशन व्यवसाय :- हाउस वाइफ प्रकाशित रचनाएँ :- अनेक पत्र- पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशित। सम्मान :- गीतकार साहित्यिक मंच द्वारा श्रेष्ठ ग़ज़लकार उपाधि से सम्मानित, प्रभा मेरी कलम द्वारा लेखन प्रतियोगिता में उपविजेता, ताज लिटरेचर द्वारा लेखन प्रतियोगिता में तृतीय स्थान, साहित्य सुषमा काव्य स्पंदन द्वारा लेखन प्रतियोगिता में तृतीय स्थान, काव्य सागर द्वारा लेखन प्रतियोगिता में श्रेष्ठ कहानीकार, साहित्य संगम संस्थान द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, सहित्यपिडिया द्वारा लेखन प्रतियोगिता में प्रशस्ति पत्र से सम्मानित। आगरा

One thought on “ख़ामोश लफ्ज़

  • सुमन अग्रवाल "सागरिका"

    बहुत बहुत धन्यवाद

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