ख़ामोश लफ्ज़
हर कदम पर साथ निभाने की कसमें खाई तुमने।
जो वादे किए सब भूलकर, रस्में न निभाई तुमने।
हमने सबकुछ सह लिया जितने भी किये सितम,
जितने भी अरमान थे सारे, धूल में मिलाई तुमने।
इससे तो तन्हाई अच्छी काश भरोसा ना होता,
यादों को दिल में बसाकर क्यों की जुदाई तुमने।
जाने कितने आँसू पोंछे रातों की नीदें खोकर,
जख्म बने नासूर मेरे क्यों की रुसवाई तुमने।
विश्वास किया तुम पर मगर बेवफा तुम निकले,
वफ़ा किया था हमने, क्यों की बेवफाई तुमने।
ये कैसा मोड़ जिंदगी का न हम है और न तुम,
प्यार में धोखा मिला हमें, बस दी तन्हाई तुमने।
खामोश हैं फिजायें, खामोश हैं मेरे लफ्ज़ “सुमन”
धोखे खाये जीवन में बहुत, हस्तियां मिटाई तुमने।
— सुमन अग्रवाल “सागरिका”
आगरा
बहुत बहुत धन्यवाद