कुकुभ छंद (गीत) – बरखा आयी
गरज बरस कर सावन आया, बरखा रानी सँग आयी ।
ओस बूंद झूले वसुधा पर , तरुवर ऊपर तरुणाई ।
नदिया ,सागर ,लहरें , झरने , दीवाने से लगते हैं ।
नीम तले दो अंजाने भी , तो अपने से लगते हैं ।
महक रही हैं गीली साँसें ,रुत मिलने की है आयी ।
ओस बूंद खेले वसुधा पर ,तरुवर ऊपर तरुणाई ।।
अम्बर और धरा का रिश्ता ,जुड़ा हुआ है सदियों से ।
श्याम घटाएं भी घिर कर कुछ ,तो बतियाती नदिया से ।
छम- छपाक कर मैं भी नाचूँ ,जैसे नाचे बदराई ।।
ओस बूंद खेले वसुधा पर ,तरुवर ऊपर तरुणाई ।।
— रीना गोयल ( हरियाणा)