कविता

मौन

ये जो तुम देखते हो
न एकटक मुझे
जानते हो कितनी हलचल
मचा जाती है तुम्हारी आंखे
न जाने कितनी बेचैनी, कैसी प्यास
कितने सवाल और तड़प
है इन आँखों मे
और कहते हो मैं देखती नही कभी
तुम्हारी आँखो में झांककर ..
हां ये भी तो कहते हो…
कुछ कहती नहीं मैं
राज़ रखती हूं तुमसे …
हां रखती हू तुमसे कुछ राज़
क्योंकि नहीं चाहती
खुलकर कहना सब बातें
सब कहना जरूरी भी नही होता
तुम क्यो सब समझकर भी
बनते हो अनजान !!!
क्यो नहीं पढ़ते मेरी आँखों को
क्या तुम्हें कुछ नही दिखता इनमें !!
या देखकर भी समझना नही चाहते !!
सुनो…..
चलो ना मौन को समझते है …
थोड़ा तुम, थोड़ा मैं

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]