केन्द्रीय सरकार का भावी एजेंडा
हर आम चुनाव के बाद गठित सरकार के भावी एजेंडे को संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर महामहिम राष्ट्रपति के अभिभाषण के माध्यम से जनता तक पहुंचाने की परंपरा रही है। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए कल दिनांक २० जून को महामहिम राष्ट्रपति महोदय ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। उन्होंने देश की आज़ादी की ७५वीं वर्षगांठ यानी २०२२ तक हर गरीब को चिकित्सा सुविधा और आवास देने का वादा किया। राष्ट्रपति महोदय ने आगामी ५ वर्षों के लिए मोदी सरकार की योजना और प्राथमिकताएं साझा की। उन्होंने सरकार को गरीबों, किसानों और जवानों के लिए समर्पित बताते हुए कहा कि आज़ादी के ७५ वर्ष पूरे होने तक विकास के नए मानकों को हासिल करेंगे। उन्होंने ‘निकाह-हलाला’ और तीन तलाक जैसी कुप्रथाओं के उन्मूलन को अत्यन्त आवश्यक बताया। संक्षेप में उन्होंने देश के सभी नागरिकों के सिर पर छत, सभी को इलाज और सन २०२२ तक अन्तरिक्ष में तिरंगा लहराने की सरकार की प्रतिबद्धता से संसद को अवगत कराया। राष्ट्रपति महोदय का अभिभाषण सामान्य रूप से प्रशंसा के योग्य था, लेकिन कुछ मुद्दों पर निराशाजनक भी था। भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में किए गए कुछ महत्त्वपूर्ण वादों का अभिभाषण यानी सरकार की भावी नीतियों में उल्लेख तक नहीं था। कश्मीर की विवादित धारा ३७० और ३५ए को हटाने और राम मन्दिर निर्माण के संबन्ध में एक शब्द भी नहीं कहा गया जिसके कारण भाजपा के करोड़ों-करोड़ों कार्यकर्त्ता और समर्थकों की भावना आहत हुई। ध्यान रहे कि इन्हीं कार्यकर्ताओं और समर्थकों के दिन-रात के प्रयास के कारण ही भाजपा प्रचण्ड बहुमत के साथ पुनः सत्ता में आई है।
यह देश का दुर्भाग्य है कि अबतक जितने भी प्रधान मन्त्री हुए हैं, सबके सब नेहरू बनने की दौड़ में शामिल रहे हैं। देश के प्रथम गैर कांग्रेसी प्रधान मन्त्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी भी इस दौड़ से अछूते नहीं रहे। अपने दूसरे कार्यकाल में प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी भी इस दौड़ में शामिल होने को तत्पर दिखाई देते हैं। सबका विश्वास जीतने की उनकी अव्यवहारिक मंशा कही बहुत भारी न पड़े, इसके पहले संगठन और सरकार को चेत जाना चाहिए। संसद के नए सत्र की शुरुआत में सरकार द्वारा आयोजित रात्रिभोज में आमंत्रित करने के बावजूद राहुल और सोनिया ने बहिष्कार किया। अभी-अभी मोदीजी ने राहुल के जन्मदिन पर उन्हें बधाई भी दी थी। लेकिन सब बेकार गया। ‘एक देश एक चुनाव’ के मुद्दे पर कांग्रेस का विरोध नीतिगत नहीं है। यह विरोध मोदी का अन्ध विरोध है। क्या किसी ने अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस (२१-६-२०१९) पर राहुल और सोनिया को योग करते हुए देखा है? क्या आप ओवैसी और आज़म खान से वन्दे मातरम या भारत माता की जय बुलवा सकते हैं? सबका विश्वास अर्जित करने की बात पूरी तरह सैद्धान्तिक है। भगवान श्रीकृष्ण भी लाख प्रयास के बाद भी सबका विश्वास अर्जित नहीं कर सके। इसके लिए मोदीजी से आग्रह है कि जिनके विश्वास के बल पर वे पुनः सत्ता में आए हैं उनका ही विश्वास और दृढ़ करने का प्रयास करें, वरना अगले चुनाव में भारी मन से कही ये न कहना पड़े — माया मिली न राम।
भाजपा सत्ता पाते ही अपने कोर वोटर्स की उपेक्षा करना शुरु कर देती है। गुजरात के मुख्यमन्त्री रहते हुए मोदी जी की पूरे देश में जो छवि बनी, वह थी एक अडिग और भरोसेमंद हिन्दू-रक्षक नेता की। उन्हें घोर सांप्रदायिक, अतिवादी और मौत का सौदागर भी कहा गया। देश-विदेश में उनका प्रबल विरोध किया गया। लेकिन दशकों से कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति और हिन्दुओं की उपेक्षा ने मोदी जी को अचानक हिन्दू-हृदय सम्राट बना दिया। जनता ने उनकी हिन्दुत्व-छवि को स्वीकार किया और जाति-पांति की दीवार तोड़कर उन्हें बहुमत दिया। कोई इस मुगालते में नहीं रहे कि २०१९ का चुनाव ‘सबका साथ, सबका विकास’ के कारण जीता गया। यह जीत भी मोदीजी के प्रखर राष्ट्रवाद की जीत थी। लगभग सभी जनसभाओं में अमित शाह जी ने कश्मीर से धारा ३७० और ३५ए को हटाने की बात कही थी। प्रधान मन्त्री और अमित शाह, दोनों ने राम मन्दिर के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जोरदार शब्दों में कई बार दुहराई थी। लेकिन सरकार के भावी एजेन्डे में ये प्रतिबद्धताएं नेपथ्य में चली गईं। नई सरकार बनते ही यह घोषणा की गई कि सभी मुस्लिम लड़कियों को हर स्तर की शिक्षा के लिए सरकारी छात्रवृत्ति दी जाएगी। क्या यह ‘सबका विकास’ कार्यक्रम का अंग प्रतीत होता है? क्या गरीब हिन्दू लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति आवश्यक नहीं है? इसे तुष्टीकरण नहीं कहा जाय तो और क्या नाम दिया जाय?
प्रधान मन्त्री मोदीजी, अध्यक्ष अमित शाह्जी और भाजपा संगठन से यह आग्रह है कि वे पहले अपने वर्तमान समर्थकों, कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के विश्वास को और सुदृढ़ करने का प्रयास करें, फिर अन्यों का विश्वास अर्जित करने की कोशिश करें। एक बहुचर्चित श्लोक है —
यः ध्रुवाणि परितज्य अध्रुवेण निशेवते।
ध्रुवाणि तस्य नश्यन्ति अध्रुवं नश्यमेव हि ॥
जो निश्चित को छोड़कर अनिश्चित की तरफ भागता है, उसका अनिश्चित तो अनिश्चित ही रहता है, निश्चित अवश्य नष्ट हो जाता है।