क्षणिकाएँ
क्षणिकाएँ
१ . लीची और भूख
सत्ताओं का निर्बल से
सदा यही व्यवहार
जैसे लीची भूखे को हिं
करती है बीमार ।।२ . चमकी
लीची बता रही भइया
जीव जीभ का रेट
भरे पेट को रसभरी
‘ चमकी ‘ खाली पेट ।।३ . आदमी की चाल
कुदरत भी चलने लगी
लगता आदम चाल ।
बर्दाश्त नहीं लीची खाए
इक लाचार का लाल ।।समर नाथ मिश्र