मनहरण घनाक्षरी : मोर
पीहू पीहू करे मोर,
आषाढ़ सुहानी भोर।
काले घन घिर आए,
जल बरसायेंगे।
कोयलिया कूक रही,
पपिया ने बात कही,
मेघा बरसेंगे तब
प्यास को बुझायेंगे।
ग्राम देव आस करे,
सुर पति खेत भरे।
प्रभु की कृपा होय,
फसल उगायेंगे।
ऋषि मुनि ध्यान धरें,
प्रभू से विनय करें।
आ रे मेघा झूम कर,
तेरे गुण गाएंगे।
— प्रेम सिंह राजावत ‘प्रेम’