लघुकथा : हद है
“आखिर जरूरत क्या है रिश्तेदारों को रेप्लाई करने की ”
“लेकिन मैं तो बस उन्हीं बातों का जबाब देती हूँ जो वह पूछते है अगर न दूं तो कहेंगे कि मैं घमंडी हूँ …इसमें बुरा क्या है …घर पर आने पर भी तो हम सब बात करते है न”
“लेकिन अपनी तरफ से मैसैज करने की पहल करने की क्या जरूरत थी ”
“बात क्या है ?” रागिनी ने शंका व्यक्त की ।
“कल कोई मैसैज किया था तुमने तो वह सबके सामने कह रहे थे कि आपकी मिसेज का मैसैज आया है ”
मुंह से ओह निकला रागिनी के …..
एक मैसैज से उसका कैरैक्टर डिसाइड हो रहा था ,सोच रही थी कितना आसान होता है न किसी स्त्री का कैरेक्टर डिसाइड करना ।
” हां …उनकी मां का स्वर्गवास हो गया है न तो सांत्वना मैसैज दिया था …. आज चल रहे है न उनके घर ”
घर जाकर घूंघट करके एक तरफ बैठ गई ,
“ये क्या बदतमीजी है …घर में गमी हुई है दो शब्द सहानुभूति के तो बोलो ” रागिनी का पति फुसफुसाया।
” बही तो बोला था मैसैज बाॅक्स में…जिसका इन्होंने इतना बडा इश्यू बना दिया था ” ……
“मुझे पता है आपने इसका इश्यू क्यो बनाया दरअसल आप मुझसे चैट बाॅक्स मे कुछ और ही उम्मीद रखते थे जो पूरी न होने पर इस तरह खुन्नस निकाली …और मैं आपको इसलिये माफ करती रही कि आप इनके बडे भाई समान है …आप मेरे रेप्लाई न देने के बाद भी कितने मैसैज करते थे अगर इसके स्क्रीन शाट लगा दूं तो आपकी इज्जत की धज्जियां उडते देर न लगेगी …औरतों पर उंगली उठा कर बडी आसानी से बदनाम किया जा सकता है और आप लोगों का क्या ???
पास जाकर धीरे से बोले गये ये शब्द बम की तरह धमाके कर गये कान में ।
उठी उंगली तोड तो न सकी लेकिन नीचे जरूर कर दी ।।।
— रजनी चतुर्वेदी