आपात्काल : स्वतन्त्र भारत का काला इतिहास
जो देश अपने इतिहास को भूल जाता है, उसका भूगोल भी बदल जाता है। हमारे देश का भूगोल बार-बार इसलिए बदला कि हम अपने इतिहास से कोई सबक नहीं ले पाए, बल्कि उसे भूल भी गए। कांग्रेसियों और वामपन्थियों ने हमारी पाठ्य पुस्तकों और इतिहास में सप्रयास इतनी झूठी बातें लिखीं और फैलाई कि नई पीढ़ी में हमेशा के लिए एक हीन भावना जागृत हो गई। पिछले पांच वर्षों में नई पीढ़ी महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, रानी लक्ष्मी बाई का नाम तो जान गई है लेकिन उसे यह नहीं पता कि वे कब और कैसे अपने ही लोगों के षडयंत्र के शिकार हुए। मान सिंह, महाराणा प्रताप के रिश्तेदार थे, लेकिन निजी स्वार्थों के कारण पहले उन्होंने अपनी बहन की शादी अकबर से कराकर, अकबर का विश्वास अर्जित किया फिर चित्तौड़ पर चढ़ाई करके महाराणा प्रताप को बेघर किया। वामपन्थियों ने मान सिंह को तथाकथित गंगा-जमुनी संस्कृति का सबसे बड़ा पोषक करार दिया है और इस घटना को सदियों पहले भारत में धर्म निरपेक्षता का प्रमाण बताया है। वीर शिवाजी को धोखे से दिल्ली बुलाकर उन्हें औरंगज़ेब द्वारा गिरफ़्तार कर कारागार में डालने के सूत्रधार और कोई नहीं मिर्ज़ा राजा जयसिंह थे। अंग्रेजों के दांत खट्टे कर देने वाली अद्भुत वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई ने झांसी छोड़ ग्वालियर की ओर कूच करने के पूर्व सिन्धिया परिवार के ग्वालियर के तात्कालीन राजा को पत्र लिखकर स्वतन्त्रता संग्राम में सहायता देने का आग्रह किया था। महारानी झांसी की हस्तलिपि में लिखा वह पत्र आज भी ग्वालियर के राज महल के संग्रहालय में सुरक्षित है। उस ऐतिहासिक पत्र के उत्तर में ग्वालियर के राजा ने रानी लक्ष्मीबाई के ग्वालियर पहुंचने पर गिरफ़्तार करके अंग्रेजों को तोहफ़े में देने की योजना बनाई। लेकिन उन्हीं की सेना ने इस निर्णय के खिलाफ़ बगावत कर दी और झांसी की रानी का पक्ष लेते हुए अंग्रेजों से युद्ध किया। महारानी ने अपने जीवन का अन्तिम युद्ध ग्वालियर में ही लड़ा था। हमारी भुलक्कड़ जनता ने सबकुछ भुला दिया और आज़ाद हिन्दुस्तान में उनके वंशजों को केन्द्र और राज्यों में मन्त्री पद से नवाजा। कौन नहीं जानता कि पाकिस्तान के निर्माण से लेकर आधा कश्मीर पाकिस्तान को देने में पंडित नेहरू की कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। तिब्बत को चीन को थाली में सजाकर देने में उन्होंने नायक की भूमिका निभाई और चीन को अपना पड़ोसी बना लिया। हमारी सीमा चीन से कहीं नहीं मिलती थी। उसे पड़ोसी बनाने की कीमत १९६२ में चीन को अपनी ६०००० वर्ग कि.मी. देकर देश को चुकानी पड़ी। ऐसे देशद्रोही नेता के वंशजों को हमने ५५ साल तक देश की बागडोर सौंपी और अपना ही सत्यानाश कराया। आज भी उस वंश के एक पप्पू द्वारा रुठने-मनाने का खेल जारी है और हजारों चाटुकार उससे पद पर बने रहने के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं।
आज़ाद हिन्दुस्तान में अपनी सत्ता बचाने के लिए नेहरू जी की पुत्री और तात्कालीन प्रधान मन्त्री इन्दिरा गांधी ने लोकतन्त्र का गला घोंटते हुए जिस तरह पूरे देश में आपात्काल लगाकर असंख्य लोगों को जेल में डाला और यातनाएं दी, वैसा अत्याचार गुलाम भारत में अंडमान निकोबार द्वीप में कालापानी की सज़ा पा रहे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के साथ अंग्रेजों ने भी नहीं किया था। हां, ऐसे अत्याचार मुगल काल में अवश्य हुए थे। आपात्काल में अस्वस्थ लोकनायक जय प्रकाश नारायण के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया गया, परिणामस्वरूप उनकी किडनी बुरी तरह खराब हो गई। बाद में उनकी मृत्यु किडनी खराब होने से ही हुई। दक्षिण भारत की प्रख्यात लोकप्रिय अभिनेत्री श्रीमती स्नेहलता रेड्डी को अकारण उनके घर से गिरफ़्तार करके बंगलोर के जेल में रखा गया। उनका अपराध यही था कि वे एक कुशल कलाकार होने के साथ-साथ एक कर्मठ सामाजिक कार्यकर्त्ता भी थीं। समाजवाद में उनका विश्वास था और जार्ज फ़र्नाण्डीस के द्वारा किए गए आन्दोलनों में उन्होंने सक्रिय साझेदारी की थी। जार्ज फ़र्नाण्डिस पर उस समय बड़ौदा डायनामाईट काण्ड गढ़कर देशद्रोह का कल्पित और झूठा मुकदमा चलाया जा रहा था। जार्ज पुलिस की गिरफ़्त से बाहर थे। बेचारी स्नेहलता से जार्ज का पता पूछा जाता। उन्हें पता होता, तब तो वे बतातीं। उन्हें असंख्य असह्य यातनाएं दी गईं। उनके नारीत्व के साथ खिलवाड़ किया गया। यातनाओं को सहते-सहते अन्त में जनवरी १९७७ में वे मृत्यु को प्राप्त हुईं। ऐसी यातनाओं की हजारों घटनाएं घटीं। कुछ प्रकाश में आईं, कुछ दबी रह गईं। मैं उस समय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग का छात्र था। मेरे कई मित्रों को हास्टल से, सड़क पर चलते हुए और कालेज परिसर से अकारण गिरफ़्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया। मैं अपने उन मित्रों — सर्वश्री विष्णु गुप्ता, इन्द्रजीत सिंह, होमेश्वर वशिष्ठ, राज कुमार पूर्वे, प्रदीप तत्त्ववादी, अरुण प्रताप सिंह, श्रीहर्ष सिंह जैसे क्रान्तिकारियों का नाम बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ लेता हूं। इन्हें गिरफ़्तार करके भेलुपुर थाने के सीलन भरे कमरे में जिसमें मल-मूत्र की दुर्गंध लगातार आती थी, कई रातों तक रखा गया और नानाजी देशमुख का पता पूछा जाता रहा। वे नानाजी का पता बताने में असमर्थ थे। नानाजी भूमिगत थे। उनका पता किसे मालूम था? नहीं बताने पर उन्हें बेंतों से पीटा गया। किसी की हड्डी टूटी, तो किसी का सिर फटा। कुछ पर मीसा तामिल किया गया तो कुछपर डी.आई.आर.। डीआईआर वाले कुछ दिनों के बाद जमानत पर छूट गए लेकिन उपकुलपति ने उन्हें हास्टल में रहने की अनुमति नहीं दी। ये लोग रवीन्द्रपुरी में एक किराये का मकान लेकर रहे और येन-केन-प्रकारेण अपनी पढ़ाई पूरी की। श्री दुर्ग सिंह चौहान छात्र संघ के अध्यक्ष थे और आर.एस.एस. के वरिष्ठ कार्यकर्त्ता थे। उन्हें गिरफ़्तार करने के लिए इतना कारण पर्याप्त था। वे एम.टेक. के विद्यार्थी थे। जमानत पर रिहा होने के बाद भी बी.एच.यू. के वी.सी. कालू लाल श्रीमाली ने उन्हें निष्कासित कर दिया। वे एम.टेक. पूरा नहीं कर पाए। बाद में दक्षिण भारत के किसी इंजीनियरिंग कालेज से उन्होंने एम.टेक पूरा किया और आई.आई.टी. दिल्ली से पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की। लेकिन इस प्रक्रिया में उनके कई बहुमूल्य वर्ष बर्बाद हो गए। हमारे इंजीनियरिंग कालेज के फार्मास्युटिकल इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर डा. शंकर विनायक तत्त्ववादी को उनके विभाग से गिरफ़्तार किया गया। गिरफ़्तारी के बाद सबको यातनाएं देना पुलिसिया प्रक्रिया का एक आवश्यक अंग बन गया था। दिल्ली में गिरफ़्तार स्वयंसेवकों के नाखून उखाड़े गए, उनके नंगे बदन को सिगरेट की जलती बटों से दागा गया। वहां अत्याचार चरम पर था क्योंकि वहां संजय गांधी और उनकी चहेती रुखसाना सुल्ताना के अत्याचारों का खुला ताण्डव चल रहा था। इलाहाबाद से कानपुर जा रही एक बारात को रास्ते में रोककर दुल्हा समेत सभी बारातियों की जबर्दस्ती नसबन्दी की गई। कहां तक गिनाएं। अत्याचारों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है जिनमें से कुछ का जिक्र प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने अपनी पुस्तक ‘दी जजमेन्ट’ में भी किया है। नेहरू-गांधी परिवार के वंशज आज भी विभिन्न अपराधों में लिप्त होने के के बावजूद न्यायपालिका की कृपा से जमानत पर होने के बावजूद भी खुलेआम घूम रहे हैं और प्रधान मन्त्री मोदी जी के कार्यकाल की तुलना इमर्जेन्सी से कर रहे हैं। बेशर्मी की हद है!
मैं यह लेख इसलिए लिख रहा हूं कि नई पीढ़ी आपात्काल के अत्याचारों से परिचित हो और इतिहास से सबक ले। आज भारत में लोकतंत्र कायम है, इसका श्रेय आर.एस.एस. के लाखों यातनाभोगी स्वयंसेवकों को है जिन्होंने अपने कैरियर और जीवन की परवाह न करते हुए संघर्ष जारी रखा, जिसके कारण हम स्वतन्त्र जीवन जी रहे हैं। उन योद्धाओं को शत कोटि नमन!