मुक्तकाव्य
“मुक्तकाव्य”
कुछ कहना चाहता है गगन
बिजली की अदा में है मगन
उमड़ता है घुमड़ता भी है
टपकता और तड़फता भी है
लगता है रो रहा है
अपनी अस्मिता खो रहा है
सुनते सभी हैं पर कहाँ है मनन
कुछ कहना चाहता है गगन।।
कौन कर रहा है दमन
सभी की चाह है अमन
कोई छुपकर रोता है
कोई हृदय में बीज बोता है
लगता है जमीन खिसक रही
बिना ईंधन आग धधक रही
उम्मीद का है हरि कीर्तन
कुछ कहना चाहता है गगन।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी