कुकुभ छंद गीत : सावन आने वाला है
यादों का अविराम अँधेरा ,फिर से छाने वाला है ।
बरखा बूँदे ताप बढ़ाती ,सावन आने वाला है ।।
बड़ा सुहाना लगता था सब,जब बूँदे आँगन आती ।
घनन- घनन बादल के सुर थे,बिजुरी भी तन चमकाती ।
किन्तु जब से गये हैं प्रियतम , कब कुछ भाने वाला है ।
बरखा बूँदे ताप बढ़ाती ,सावन आने वाला है ।।
सजन विरह में यौवन बीता ,रो रो ऋतुएं हैं झेली ।
मधुर स्मृति ही बनी सहारा ,कर्कश हुई मैं अलबेली ।
कुहू-कुहू का राग पपीहा ,क्योंकर गाने वाला है ।
बरखा बूँदे ताप बढ़ाती ,सावन आने वाला है ।।
मेघों के सँग मोर नाचते ,हिय में हूक उठाते हैं।
पीड़ा बहती आँसू बनकर ,जब बादल घिर आते हैं ।
व्याकुल जिय की हाय विवशता ,कैसी लाने वाला है ।
बरखा बूँदे ताप बढ़ाती ,सावन आने वाला है ।।
— रीना गोयल