अल्लाह और भगवान
कापी में से कागज़ के फाड़ने की आवाज़ सुन अध्यापिका चौंक गईं और चुपचाप मूक-बधिर छात्र के पीछे खड़ी होकर देखने लगीं कि वह इस कागज़ का क्या करेगा ! छात्र ने उस कागज़ पर किसी अन्य छात्र का नाम लिखा और कुछ ऐसा लिखा जो अच्छा न था।
लपककर अध्यापिका ने कागज़ अपने कब्ज़े में कर लिया और मेरे पास आकर बताने लगीं, “कोमल जी,आश्चर्य ! बहुत बड़ा आश्चर्य ! जो सुन नहीं सकते, वो ऐसी गंदी बात कहां से कैच कर लेते हैं ? देखो , इस कागज़ पर छात्र ने अपने दोस्त का नाम लिखकर नीचे गाली लिखी है। हम इनके दिमाग़ से क्या-क्या निकालें ,क्या-क्या भरें ? इतना सिर खपाओ तो भी कहा जाता है – कोर्स कंप्लीट नहीं हुआ। क्या गालियाँ कोर्स में शामिल नहीं हो सकतीं ? आज का लेसन तो मेरा यही रहा ,जिसमें पूरा पीरियड ख़त्म।”
मुझे हँसी तो आई , मगर टालनेवाली बात भी नहीं थी। छात्र को अपने मित्र से बेहद लगाव था, इसलिए उसने गुस्से में गाली लिखकर उसे देनी चाही थी। मैंने समझाते हुए कहा, “देखो अश्फाक़, तुम माफ़ी नहीं मांगोगे तो मैं यह कागज़ प्रधानाध्यापक को दिखा दूँगी।”
वह डर गया। उसने क्षमा माँग ली । पर वह फिर भी खड़ा रहा । मैंने उसे अपनी कक्षा में जाने का संकेत किया, मगर वह कागज़ को छीनने का प्रयास करने लगा। मैंने उसकी ख़ुशी के लिए कागज़ को फाड़ दिया। “अब क्या है ? जाओ भी ।” मैंने उसे हिदायत दी, “आगे से ऐसा मत करना।”
उसने इशारों से मुझे समझाया , “आपने कागज़ तो फाड़ दिया, पर मुंह से किसी को मत बताना।” उसे अविश्वास था मुझपर। मैंने कहा,”अच्छा , नहीं बताऊँगी ।” उसने मेरा पेन छीनकर मेज़ पर लिखा – क़सम खाओ ।
मैंने पेन से लिख दिया, ‘अल्लाह की क़सम।’
पढ़ते ही वह गुस्से से भर उठा । उसने तत्काल पेन से ‘अल्लाह’ शब्द को क्रास लगाकर काट दिया और लिखा – ‘भगवान ‘। क्रास किए अल्लाह शब्द पर उंगली रख दूसरा हाथ अपने सीने पर रखकर मुझे समझाया , “अल्लाह तो मेरा है, भगवान आपका। मेरे अल्लाह की झूठी क़सम खाएँगी आप ? “
मैं उस बालक की बुद्धि पर अवाक् रह गई । मुझे अपने ही भगवान की याद दिलानेवाला यह मूक-बधिर अश्फाक़ मेरी दृष्टि में किसी फ़रिश्ते से ज़रा भी कम नहीं था।
— कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा ‘