कविता

सच्चा मित्र (4 अगस्त मित्रता दिवस पर)

न रिश्ता है न नाता है,
फिर भी वह मुझे सुहाता है,
दिल में विश्वास जगाता है,
जब मित्र कोई बन जाता है।
कितनी भी मुश्किल आती है,
हल उसका मुझे बताता है,
सत्पथ पर चलता खुद भी,
मुझको भी प्रेरित करता है।
निज स्वार्थ सदा तज कर भी,
वह अपने फ़र्ज निभाता है
वह साहस दे जब होता निराश मैं,
वह सच्चा मित्र कहलाता है।
दुःख की घड़ियों में अक्सर लोग,
दूर खड़े ही मिलते है,
सच्चा मित्र निभाता धर्म,
साथ खड़ा दिख जाता है।
वह झूठ कभी न मुझसे बोले,
हर सच मुझसे कहता है,
लाभ उसे होता भी यदि,
नुकसान न मेरा करता है।
उपहास करो कितना भी उसका,
कुछ भी न वह कहता है,
क्रोधित भी हो जाओ अगर,
हँस कर ही बाते करता है।
कृष्ण सुदामा की नही दोस्ती,
पर कमतर न मेरी यारी है,
वर्षों संग यारी साथ रही,
लगती कितनी प्यारी है।
हम साथ पढ़े व साथ बढ़े,
मेरे भाई ही जैसा है,
जब होते बंद सभी रस्ते,
बस उसका चेहरा दिखता है।
— लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

सहायक अध्यापक मोहल्ला-बैरिहवा, पोस्ट-गाँधी नगर, जिला-बस्ती, 272001-उत्तर प्रदेश मोबाइल नं-7355309428