कविता

किनारा…

पूछता है रास्ता
कोई सहारा ढूंढता है
बावला है-जिंदगी में
किनारा ढूंढता है
सुबह शाम अपनी
मुसीबतों को गिना कर
दुआओं को अपनी
बेअसर बता कर
जाने किस खुशी का
सिरा ढूंढता है
बावला है-जिंदगी में
किनारा ढूंढता है
उम्मीदों की गठरी
सिर पर उठाकर
न चलना तू राही
खुदी को भुलाकर
सब भटके हुए हैं
क्यों इनसे तू आखिर
खुशियों का अपनी
पता पूछता है
बावला है-जिंदगी में
किनारा ढूंढता है
— आनंद कृष्ण

आनंद कृष्ण

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