राजनीति

रचनात्मक गतिविधियों का केंद्र बना राजभवन

प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने अपने कार्यकाल के सुनहरे पांच वर्ष के कार्यकाल को पूरा कर लिया है। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने प्रदेश के हित में कई कार्यो को अंजाम तो दिया ही है साथ ही साथ राजभवन को एक नया स्वरूप प्रदान किया है। विगत पांच वर्षो में राजभवन रचनात्मक गतिविधियों का केंद्र तो बना ही साथ ही राज्यपाल ने अपने व्यक्तित्व व कृतित्व के सहारे राजभवन को जनभवन में परिवर्तित करने में भी अहम भूमिका अदा की है। संभवतः राम नाईक पहले ऐसे राज्यपाल बन गये हैं जो प्रदेश की जनता व प्रबुद्ध वर्ग के बीच एक मुख्यमंत्रीे से कहीं अधिक लोकप्रिय हो गये हैं। राज्यपाल राम नाईक ने अपने कार्यकाल के दौरान अपने सभी संवैधानिक दायित्वों का पूरी शक्ति के साथ निर्वाहन ही नहीं किया अपितु सामाजिक सरोकारों पर अपनी पूरी सक्रियता बनाये रखी। राज्यपाल ने अपने कार्यकाल के दौरान यह जता दिया कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया गया राज्यपाल केवल अपने आका के निर्देशों से बंधा हुआ नहीं है। उनके प्रदेश के सभी दलों के राजनेताओं के साथ गहरे मधुर संबंध बन गये। राज्यपाल ने अपने धुर विरोधी समाजवादी दल की सरकार को भी सही राह दिखाने के भरसक प्रयास किये थे तथा उन्हें अच्छी सलाह भी दी थी। यह अलग बात है कि समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी तथाकथित विचारधारा के कारण उनकी अच्छी बातों को दरकिनार करते रहते थे। राजनैतिक कारणों से अब भी समाजवादी मुखिया व विरोधी दलों के नेता राज्यपाल राम नाईक पर तंज कसते रहते हैं जिसका संभवतः सबसे बड़ा कारण प्रदेश की कानून और व्यवस्था है। उन दिनों अपनी सरकारों के दौरान जो हालात थे उनको भी अच्छी तरह से याद करना होगा। लेकिन अपने कारनामें इन दलों को कहां याद आयेंगे?
राज्यपाल राम नाईक के पांच वर्ष का कार्यकाल वास्तव में एक सुखद अनुभूति छोड़ गया है। संवैधानिक नियमों के अंतर्गत ही कई नये प्रकार के कार्यों को राजभवन की ओर से अंजाम दिया गया है। राज्यपाल राम नाईक ने अपने अंतिम दिनों के कार्यकाल में ही राजभवन में स्वामी विवेकानंद की कांस्य की प्रतिमा का अनावरण कर ऐतिहासिक कार्य किया। लखनऊ के राजभवन में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा देश की पहली ऐसी प्रतिमा बन गयी है जो किसी राजभवन में लगायी गयी है। अपने अंतिम दिनों में राज्यपाल ने लखनऊ के रेजीडेंसी में लाइट एंड साउंड शो को दोबारा शुरू करने का निर्देश भी दे दिया है, जिसमें अब राजधानी लखनऊ घूमने आने वाले पर्यटकों को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास और यहां के क्रातिकारियों के विषय में अदभुत जानकारी मिल सकेगी। पर्यटकों की दृष्टि से रेजीडेंसी का विकास भी किया जा रहा है। आगामी दो-तीन माह में लखनऊ रेजीडेंसी का स्वरूप बदला हुुआ दिर्खााई देगा।
राज्यपाल रामनाईक के द्वारा लिखी गयी पुस्तक चैरेवेति चैरेवति बहुत ही लोकप्रिय पुस्तक सिद्ध हो रही है। संभवतः वह देश के ऐसे प्रथम राज्यपाल बनने का र्कीिर्तमान बना लेंगे जिसका अनुवाद सभी क्षेत्रीय भाषाओं में ही नहीं अपितु विदेशी भाषओं में भी हो रहा है। कई भाषाओं के संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा यह पुस्तक नेत्रहीनों के लिए भी सुलभ उपलब्ध हो चुकी है। चैरेवेति-चैरेवेति पुस्तक एक प्रकार से स्वामी विवेकानंद के बोध संदेश उठो, जागो और तब तक न रूको जब तक अपने लक्ष्य को पूरा न कर लो का ही संदेश आगे बढ़ा रही है। यह पुस्तक गीता का भी आधुनिक प्रारूप है जिसमें बिना किसी प्रकार की चिंता किये हुए अपने लक्ष्य व कर्म को ध्यान से पूरा करने की बात कही गयी है। यह राज्यपाल राम नाईक का ही प्रयास रहा कि आज प्रदेश सरकार कुष्ठ रोगियों को मकान और पेंशन देने पर सिद्धांततः सहमत हो गयी है।
अब राम नाईक जी के कार्यकाल में प्रदेश का राजभवन जनभवन में निश्चित रूप से परिवर्तित हो चुका है। आगामी दिनों में जो भी राज्यपाला आयेंगे उनके लिए वह एक लकीर खींचकर गये हैं हालांकि अभी प्रदेश के लिए नये राज्यपााल की नियुक्ति नहीं हुई है। अपने अंतिम समय में राज्यपाल राम नाईक ने राजभवन में राम नाईक 2018- 19 की 122 पेज की पुस्तक का लोकार्पण किया। जिसमें उन्होंने अपने कामकाज का सारा विवरण जनता के बीच प्रस्तुत कर दिया और पारदर्शिता व जवाबदेही का भी अनुपम उदाहरण प्रस्तत किया है। प्रदेश के राजभवन के इतिहास में इस प्रकार की पारदर्शिता किसी भी राज्यपाल ने नहीं दिखाई। उन्होंने हर वर्ष अपने काम का विवरण प्रस्तुत किया। राज्यपाल राम नाईक कहते हैं कि उन्हें काम करने का नशा है। राज्यपाल वर्ष में 20 और पांच वर्ष में 100 दिन का अवकाश ले सकते हैें लेकिन 22 जुलाई 2014 से 6 जुलाई तक वह सिर्फ 22 दिन अवकाश पर रहे। उन्होंने राजभवन के दरवाजे आम जनमानस के लिए पूरी तरह से खोल दिये।
पांच वर्षो के दौरान उन्होंने 30,225 लोगों से मुुलाकात की और उनके 2.19 लाख पत्रों को आगे बढ़ाया। इस अवधि में उनकी ओर से प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्रियों और अन्य प्रदेशों के राज्यपालों को 551 पत्र लिखे गये। राज्यपाल की सलाह पर ही इलाहाबाद का नाम प्रयागराज किया गया। वाराणसी, आगरा, मेरठ और लखनऊ में मराठी गीत रामायण का आयोजन किया गया। राज्यपाल के ही प्रयासों से प्रदेश में पहली बार 24 जनवरी को उत्तर प्रदेश दिवस मनाया गया। केंद्र में मत्स्य संवर्धन मंत्रालय का गठन हुआ। राज्यपाल के प्रयासों से ही प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में दीक्षां समारोह का आयोजन हुआ। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हर प्रकार के सुधार की व्यापक मुहिम चलायी गयी। राजभवन की ओर से हिंदी, संस्कृत और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार बल दिया गया।
अपने अंतिम कार्यक्रम में राजयपाल रामनाईक ने लखनऊ वासियों की प्रशंसा करते हुए लखनऊ जैसा यहां के लोगों जैसा कोई और नहीं। लखनऊ के लोग व यहां का खान पान उन्हें बहुत पसंद आया। आशा करनी चाहिए कि लखनऊ वासियों को राज्यपाल राम नाईक जी का सान्निध्य आगे भी मिलता रहेगा।
— मृत्युंजय दीक्षित