कविता

शीशम

धीरे-धीरे
सड़क किनारे
बड़ा हुआ शीशम
केवल
अपने
बलबूते पर,
खड़ा हुआ शीशम
दिन भर
जितना
तपा धूप में,
उतना ही हरियाया
जाति-धरम
कब किसे
पूछता,
देता सबको छाया
सूरज
से
करने
बरजोरी,
अड़ा हुआ शीशम
बैठ लाश पर
उसकी जाने
कितनी हुईं सभाएँ
सबने कहा जरूरी है यह,
आओ इसे बचाएँ
सुनता
रहा बतकही
बेवश,
पड़ा हुआ शीशम
चली कुल्हाड़ी, आरी, रंदा,
फिर ठोकी कील गई
हुईं बहुत फरियादें,
लेकिन कब सुनी अपील गई
तके पत्थरों को,
चौखट पर जड़ा हुआ शीशम
यौवन से ही
लेता आया
हर मुश्किल से लोहा
चोटें खायीं
रूप सँवारा
फिर सबका मन मोहा
देखा नहीं
अभी तक हमने, सड़ा हुआ शीशम
बसंत कुमार शर्मा 

बसंत कुमार शर्मा, IRTS

उप मुख्य परिचालन प्रबंधक पश्चिम मध्य रेल 354, रेल्वे डुप्लेक्स बंगला, फेथ वैली स्कूल के सामने पचपेढ़ी, साउथ सिविल लाइन्स, जबलपुर (म.प्र.) मोब : 9479356702 ईमेल : [email protected] लेखन विधाएँ- गीत, दोहे, ग़ज़ल व्यंग्य, लघुकथा आदि