इक परिवार चलाती माँ
मेहनत मजदूरी कर करके ,इक परिवार चलाती माँ ।
दिन भर श्रम में जुट जानें को ,कुछ कम ही सो पाती माँ ।
पीठ बिठाकर बालक चलती , उस पर स्नेह लुटाती वो ।
शिशु को कहाँ अकेला छोड़े ,इस कारण सँग लाती वो ।
देख सके ना रुदन लाल का ,हँस हँस गीत सुनाती माँ ।
मेहनत मजदूरी कर करके ,इक परिवार चलाती माँ ।
इसको अपनी नियति समझकर ,भाग्य भरोसे नहीं रही ।
स्वयं समेटे अपने आँसू ,विपद किसी से नहीं कही ।
प्रति क्षण जीती सभी हारकर ,नयना नीर छुपाती माँ ।
मेहनत मजदूरी कर करके ,इक परिवार चलाती माँ ।
हर सुख से वंचित रह कर भी ,कष्ट हरे वो बालक के ।
संकट में भी धर कर धैर्य ,गुण गाये प्रतिपालक के ।
पोषित करती एक सभ्यता ,क्षणिक रोष नहीं लाती माँ ।
मेहनत मजदूरी कर करके ,इक परिवार चलाती माँ ।
प्रेम भाव श्रम सिंचन हो तो ,मुख पर धूप सुहाती है।
हरियाली ही रूप धारकर ,उतर धरा पर आती है ।
नई फसल के लावण्य पर ,सौ सौ बलि बलि जाती माँ ।
मेहनत मजदूरी कर करके ,इक परिवार चलाती माँ ।
— रीना गोयल