कविता

पंख मुझसे छीन ली

आईने में देख मुखड़ा
मुस्कराया मैं, मेरा मन
खूबसूरत हूँ नही पर
फ़र्ज़ी अहंकार में मैं
हाव-भाव देख मेरा
पिजरे में हलचल हुआ
देखने से पहले ही
तोता व्यंग बाण छोड़ा
देखने में खूबसूरत
काश होता दिल से तू
ज़िन्दगी बख़्शी ख़ुदा ने
माना पालनहार तू
पिजरे में मुझको फंसाकर
पंख मुझसे छीन ली
भाषा का रट्टा लगाकर
ज्ञान मेरी छीन ली
देख सर्कस में तुझे
वाकिब-ए-फितरत हुआ
शेर,हाथी और भालू
हो जाते चाबुक से चालू
कुछ और नही इसको कहता
जीवों पर है अत्याचार
जीत नहीं यह मानव जाति का
वास्तविक अर्थों में है हार।।

ज़हीर अली सिद्दीक़ी

जन्म : १५ जुलाई,१९९२ -भारत के उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के जोगीबारी नामक गांव में हुआ। शिक्षा-हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट-नवोदय विद्यालय बसंतपुर सिद्धार्थनगर,उत्तर प्रदेश,भारत। स्नातक एवं परास्नातक- किरोड़ीमल महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली,भारत। रचनाएँ- साहित्य कुञ्ज,साहित्य सुधा,साहित्य मंजरी,मेरे अल्फ़ाज़ (अमर उजाला), ब्लॉगसेतु(मेरी धरोहर) आदि प्रकाशकों द्वारा आलेख(सामाजिक, व्यंग),कहानी, नज़्म,कविता, हाइकू कविता प्रकाशित। संप्रति- वर्तमान में रसायन तंत्रज्ञान संस्था माटुंगा मुम्बई महाराष्ट्र, भारत से पी-एच.डी. (शोधकार्य) में कार्यरत हैं। ईमेल- [email protected] फ़ोन न. +९१-९९८१९२४७९१