कविता

पैर में कांटा चुभा मगर

सदाचार की परिधान है
हर घर की मुस्कान है
जीत की संगीत है
बेटी हर रीति है।।

बेटी की रूप में आई
बहना की रूप में समाई
जीवनसंगिनी, तू परछाई
मूर्छित मैं, संजीवनी माई।।

बेटी बन प्रशिक्षण करती
माता पिता के सब दुख हरती
पत्नी बन दूसरे घर जाती
परिवार गलत यदि, छुपकर रोती।।

रोती और सभी सुख खोती
माता-पिता का नाम जोहती
पैर में कांटा चुभा मगर
सर पर बोझ डगर भरती।।

नौ माह कोख़ में पाली है
सबके नज़रों में खाली है
सौंदर्य लुटा तू लौट गई
सच्चे अर्थों में टूट गई।।

समाज में विकार क्यों
विकलांगता सी बयार क्यों
वैचारिक तकरार क्यों
पुत्री से तिरस्कार क्यों।।

ज़हीर अली सिद्दीक़ी

जन्म : १५ जुलाई,१९९२ -भारत के उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के जोगीबारी नामक गांव में हुआ। शिक्षा-हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट-नवोदय विद्यालय बसंतपुर सिद्धार्थनगर,उत्तर प्रदेश,भारत। स्नातक एवं परास्नातक- किरोड़ीमल महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली,भारत। रचनाएँ- साहित्य कुञ्ज,साहित्य सुधा,साहित्य मंजरी,मेरे अल्फ़ाज़ (अमर उजाला), ब्लॉगसेतु(मेरी धरोहर) आदि प्रकाशकों द्वारा आलेख(सामाजिक, व्यंग),कहानी, नज़्म,कविता, हाइकू कविता प्रकाशित। संप्रति- वर्तमान में रसायन तंत्रज्ञान संस्था माटुंगा मुम्बई महाराष्ट्र, भारत से पी-एच.डी. (शोधकार्य) में कार्यरत हैं। ईमेल- [email protected] फ़ोन न. +९१-९९८१९२४७९१