पैर में कांटा चुभा मगर
सदाचार की परिधान है
हर घर की मुस्कान है
जीत की संगीत है
बेटी हर रीति है।।
बेटी की रूप में आई
बहना की रूप में समाई
जीवनसंगिनी, तू परछाई
मूर्छित मैं, संजीवनी माई।।
बेटी बन प्रशिक्षण करती
माता पिता के सब दुख हरती
पत्नी बन दूसरे घर जाती
परिवार गलत यदि, छुपकर रोती।।
रोती और सभी सुख खोती
माता-पिता का नाम जोहती
पैर में कांटा चुभा मगर
सर पर बोझ डगर भरती।।
नौ माह कोख़ में पाली है
सबके नज़रों में खाली है
सौंदर्य लुटा तू लौट गई
सच्चे अर्थों में टूट गई।।
समाज में विकार क्यों
विकलांगता सी बयार क्यों
वैचारिक तकरार क्यों
पुत्री से तिरस्कार क्यों।।