मुक्तक
“मुक्तक”
तुझे देख सौदामिनी, डर जाता मन नेक।
तू चमके आकाश में, डरती डगर प्रत्येक।
यहाँ गिरी कि वहाँ गिरी, सदमे में हैं लोग-
सता रही इंसान को, चपला चिंता एक।।
लहराती नागिन सरिस, कातिल तेरी चाल।
तेज दौड़ती चंचला, बिना पाँव की नाल।
शोर करे जब भी चले, चिग्घाड़े दिन रात-
मन करता है पकड़ लू, पर डर से बेहाल।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी