कविता

उमस

पसीना झर रहा झरने की तरह
जिस्म तर, कपड़े हैं तर
दिन को मक्खियां
और रात को मच्छर
कैसे सहें इस उमस का कहर ?
अमीरों ने लगाईं एसियां घरों में
लेते मजे गर्मी में सर्दी का
पूछो रामू से, श्यामू से
कैसे गुजरती हैं रातें उमस भरीं ?
खड़ा था धनुआ मालिक के पास
आ रही थी जिस्म के मैल की बू
मालिक गुर्राया, दूर खड़े होने का आदेश सुनाया
धनुआ दोनों हाथ जोड़ गिड़गिड़ाया |
ये उमस भरे दिन
गरीबों के लिए बड़ी आफत भरे दिन होते हैं
न दिन को सुकून, न रात को चैन
रोज जीते हैं और रोज मरते हैं
डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया से लड़ते हैं |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111