उमस
पसीना झर रहा झरने की तरह
जिस्म तर, कपड़े हैं तर
दिन को मक्खियां
और रात को मच्छर
कैसे सहें इस उमस का कहर ?
अमीरों ने लगाईं एसियां घरों में
लेते मजे गर्मी में सर्दी का
पूछो रामू से, श्यामू से
कैसे गुजरती हैं रातें उमस भरीं ?
खड़ा था धनुआ मालिक के पास
आ रही थी जिस्म के मैल की बू
मालिक गुर्राया, दूर खड़े होने का आदेश सुनाया
धनुआ दोनों हाथ जोड़ गिड़गिड़ाया |
ये उमस भरे दिन
गरीबों के लिए बड़ी आफत भरे दिन होते हैं
न दिन को सुकून, न रात को चैन
रोज जीते हैं और रोज मरते हैं
डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया से लड़ते हैं |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा