जल प्रलयः बाढ़ से कराहता हिंदुस्तान
भारत में एक बार फिर से जलप्रलय ने अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया है और उफनते नदियों के जल से उत्पन्न हुए बाढ़ ने असम, बिहार समेत समूचे पूर्वोत्तर को अपनी चपेट में ले लिया है। बाढ़ की मार से लोगों का जीना दुश्ववार हो गया है। प्राप्त खबरों के मुताबिक असम में अबतक बाढ़ से लगभग 81 और बिहार में तकरीबन 123 लोगों की मौत हुुुई है। असम,बिहार समेत देश भर के बाढ़ग्रस्त इलाकों में राहत एवं बचाव कार्यों की तत्परता के लिए (एनडीआरएफ) नेशनल डिजास्टर रेस्पॉन्स फोर्स की 119 टीमें तैनात की गई हैं। असम राज्य आपदा प्रबंधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस समय प्रदेश के 33 में से 30 जिले बाढ़ की चपेट में हैं। इन जिलों के लगभग 26 लाख 45 हज़ार 533 लोग प्रभावित हुए हैं। बाढ़ से प्रभावित 30 जिलों की 1,53,211 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि भी पानी में डूब गई है। बाढ़ से कुल 4,157 गांवों पर असर पड़ा है। कई नए इलाक़ों में बाढ़ का पानी घुस आने से प्रभावित लोगों की संख्या में भारी इजाफ़ा हो रहा है। फिलहाल प्रदेश के 327 राहत शिविरों में 16,596 लोगों ने शरण ले रखी है।
असम के काजीरंगा नेशनल पार्क का 90 प्रतिशत हिस्सा बाढ़ के पानी में डूब चुका है। असम के गैंडों का मुख्य आवास कहे जानेवाला काजीरंगा, पवित्र और मानस पानी के नीचे हैं। ऐसे में मजबूरन वन्य जीवों को कृत्रिम रूप से बनाए गए ऊंचे स्थानों पर शरण लेनी पड़ रही है। असम में ब्रह्मपुत्र नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। फलतः ब्रह्मपुत्र का पानी तटबंधों से उफनकर गुवाहाटी के रिहायशी इलाके में भर गया है। इसके अलावा यह जोरहाट, तेजपुर, गोवालपारा और धुबरी में भी खतरे के निशान को पार कर चुकी है। कई जगह ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों ने भी खतरे के निशान को पार कर लिया है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, सोनितपुर, गोलाघाट, जोरहाट, बाक्सा, डिब्रूगढ़, नलबारी, होजाई, मोरीगांव, लखीमपुर, दार्रांग, नगांव, कामरूप, बारपेटा, धुबरी, माजुली, करीमगंज, शिवसागर, हैलाकांंदी, दक्षिण सालमारा जिलों में नदी के तट, सड़कें और पुलों को भारी नुकसान पहुंचा है। ऊदलगुुरी, बारपेटा और सोनितपुर जिलों में यह नुकसान काफी व्यापक स्तर पर हुआ है।
वहीं बिहार के 12 जिलों में आयी बाढ़ से अब तक 123 लोगों की जान गई है जबकि 81 लाख 57 हजार 700 की आबादी प्रभावित हुई है। आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार बिहार के 12 जिलों शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, सुपौल, किशनगंज, अररिया, पूर्णिया एवं कटिहार में बाढ़ से अब तक 123 लोगों की मौत हुई है। बिहार में बाढ़ (Flood) से मरने वाले 123 लोगों में सीतामढ़ी के 37, मधुबनी के 30, अररिया के 12, शिवहर एवं दरभंगा के 10—10, पूर्णिया के 9, किशनगंज के 5, मुजफ्फरपुर के 4, सुपौल के 3, पूर्वी चंपारण के 2 और सहरसा का एक व्यक्ति शामिल है। बिहार के बाढ़ प्रभावित इन 12 जिलों में कुल 42 राहत शिविर चलाए जा रहे हैं जहां 22400 लोग शरण लिए हुए हैं।
बाढ़ का यह आतंक सिर्फ बिहार और असम तक सीमित है ऐसा नहीं है। भारी बारिश के कारण राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर उत्तराखंड,उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में भी बाढ़ जैसे हालात बनें हुए हैंं। मेघालय में बाढ़ के कारण अबतक आठ लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 1.55 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। तो वहीं शनिवार को मुंबई से 100 किमी दूर बदलापुर-वांगनी के बीच बाढ़ के चलते महालक्ष्मी एक्सप्रेस में फंसे 900 यात्रियों को रेस्क्यू किया गया था। इतना ही नहीं बल्कि हिमाचल के मंडी में भारी बारिश के बाद चंडीगढ़-मनाली नेशनल हाईवे पर हुए भूस्खलन के कारण हाईवे के दोनों तरफ वाहनों की लम्बी कतारें लग गई। जिनमें बड़ी संख्या में पयर्टक फंसे हुए थे। राज्य में भूस्खलन के चलते 53 सड़कों को बंद करना पड़ा। इनमें से 36 सड़कें मंडी और 17 सड़कें शिमला क्षेत्र में बंद रहींं। राजस्थान के विभिन्न जिलों में एक दर्जन बांध टूटने के कारण निचले इलाकों में पानी भर गया है। चूरू में भारी बारिश के कारण घरों और दुकानों में पानी भर गया है। जम्मू-कश्मीर में भी भारी बारिश के कारण बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। कश्मीर के कठुआ और डोडा में भी जलभराव हो गया है। वहां भी लोगों को भारी बारिश के कारण काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। इस तरह भीषण बारिश के कारण देशभर में लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
बाढ़ के मुख्य कारण:
देश भर में मुशीबत का कारण बन चुकी इस बाढ़ के आने की कुछ मुख्य वजहें हैं। उनमें से प्रमुख हैं :
वन और अरण्यों का विनाश:- पेड़-पौधे बाढ़ के प्रभाव को नियंत्रित करने में सबसे अधिक मददगार होते हैं। ऐसे में अरण्यों के विनाश के चलते वर्षा के जल को नियंत्रित कर पाना असंभव सा होता जा रहा है, परिणामस्वरूप जल के तीव्र बहाव के कारण भूमिक्षरण भी अधिक हो रहा है और चहुंओर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है। मनुष्यों द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के नाम पर तीव्रगति से वनों का विनाश किया जाना भी बाढ़ को निमंत्रण देने के समान है। हिमालय क्षेत्र में वनस्पतियों का विनाश किया जाना ही उत्तरी भाग में बाढ़ के प्रकोपों का सबसे बड़ा कारण है क्योंकि देश की सभी बड़ी नदियां हिमालय से ही निकली है।
वर्षा की अधिकता:- जब भी कहीं सामान्य से अधिक वर्षा होती है तब अचानक बारिश का पानी फैल जाता है और बाढ़ की स्थिति बन जाती है। राजस्थान, बिहार,असम जैसे राज्य प्रत्येक वर्ष अधिक वर्षा के कारण ही बाढ़ से प्रभावित होते हैं।
नदी तल में अत्यधिक मलबा का जमाव:- जब किसी मानवी एवं प्राकृतिक कारणों से नदी के तल में अत्यधिक मलवा आदि का जमाव हो जाता है तो नदी की गहराई कम हो जाती है और परिणामस्वरूप थोड़ी सी भी वर्षा होने से नदी का जल फैल जाता है और फिर बाढ़ आ जाती है।
नदी की धारा में परिवर्तनः कोसी अपनी धारा परिवर्तन की उच्छृंखलता के कारण ही बिहार का शोक कही जाती है। हालांकि, बिहार की अधिकांश नदियों का यही चरित्र है, लेकिन कोसी कुछ अधिक बदनाम है कारण वह दूसरी तमाम नदियों की तुलना में विस्तृत भूभाग में तेजी से धारा परिवर्तन करती है। इस तरह विभिन्न प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से जब नदी अपनी धारा बदलती है तब वर्षा ऋतु में बाढ़ लाती है। और इसके लिए जिम्मेदार कहीं ना कहीं हम मनुष्य ही हैं जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लगातार नदियों से रेत निकालने का काम कर रहें है जिससे जगह-जगह गड्ढे बन रहे हैं। फलतः नदी तल के नीचे बहने वाले पानी के प्रवाह का नियमन करने वाली परत की भूमिका भंग हो रही है। परिणामस्वरूप पानी बाहर आ जाता है और नदी के अगले हिस्से को पानी नहीं मिलता। यह स्थिति बरसात में बाढ़ तथा सूखे मौसम में नदी के सूखने की स्थिति पैदा करती है।
नदी, प्राकृतिक जलचक्र का अभिन्न अंग है। उसके अंतर्गत, नदी अपने जलग्रहण क्षेत्र पर बरसे पानी को समुद्र में जमा करती है। वह कछार में मिट्टी का कटाव कर भूआकृतियों का निर्माण करती है। वह जैविक विविधता से परिपूर्ण होती है। वह वर्षा जल, सतही जल तथा भूमिगत जल के घटकों के बीच संतुलन रख, अनेक सामाजिक तथा आर्थिक कर्तव्यों का पालन करती है। परंतु विकास कार्यों के बढ़ने के कारण नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में मौजूद जंगल कम हो रहे हैं और अतिवृष्टि के कारण भूमि कटाव बढ़ रहा है। भूमि कटाव बढ़ने के कारण नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में मौजूद मिट्टी की परत की मोटाई घट रही है, जिसके कारण उनमें बहुत कम मात्रा में भूजल संचय हो रहा है। फलतः नदियों में गैर-मानसूनी जल प्रवाह घट रहा है और नदी अपने मानसूनी दायित्व पूरे नहींं कर पा रही है और यह मानवीय हस्तक्षेप का ही परिणाम है।
वर्तमान बाढ़ों का भूगर्भ से बहुत कम लेना देना है। इनका संबंध वर्षों से वातावरण में बढ़ रहे तापमान से है। इस बात के प्रमाण हैं कि वातावरण के तापमान में हो रही वृद्धि से अब वर्षा ऋतु में एक वेग से बारिश नहीं होती। गर्मी में लंबे समय तक सूखा पड़ने के बाद बहुत थोड़े समय में भयंकर बारिश हो जाती है। यह सब कुछ इतना तेजी से होता है कि पानी को जमीन में उतर पाने जितना समय ही नहीं मिलता। वृक्षों के न होने की स्थिति ने इस आपदा को और भी बदतर बना दिया है, क्योंकि इस वजह से मिट्टी इस हद तक ठोस हो गई है कि उसमें पानी का नीचे उतरना असंभव हो गया है। इसके परिणामस्वरूप नदी के प्रवाह में वृद्धि होती है और बाढ़ आ जाती है। यह पूर्णतया मानव निर्मित है। नदी में गहरी नालियां हैं और दोनों तरफ पानी के फैलने का स्थान है, जो कि पठार तक फैला है। ऐतिहासिक तौर पर लोग बाढ़ के रास्तों पर घर बनाने से बचते रहे हैं और वहां केवल खेती करते थे। लेकिन दशकों से चल रही मानव गतिविधियों के चलते बाढ़ संबंधी मैदानों एवं बाढ़ के रास्तों का भू आकृतिक अंतर ही समाप्त हो गया है। अब निर्माण कार्य सिर्फ बाढ़ के मार्ग में ही नहीं हो रहा है बल्कि नदियों के एकदम नजदीक तक हो रहा है। रेलवे पटरियों और पुल, जिनके आसपास बाढ़ के फैलाव का स्थान नियत होता है, के ठीक विपरीत सड़के और पुल आसानी से बह जाते हैं क्योंकि भवन निर्माता वहां की भू-संरचना की ओर ध्यान ही नहीं देते। सर्वप्रथम वे खंबे खड़े करके जलमार्ग को बाधित कर देते हैं। उसके बाद वे नदी तट पर पहुंचने के लिए दोनों ओर तटबंध बनाते हैं। ये तटबंध बांधों का काम करते है और पुल खुले स्लुज दरवाजे को दर्शाता है। पहाड़ी क्षेत्रों में निर्माता लागत कम करने के लिए या तो छोटी पुलियाएं बनाते हैं या कई बार तो सिर्फ छेद छोड़ देते हैं। उत्तरकाशी में सभी निर्माण, जिसमें सड़कें और पुल भी शामिल हैं या तो बाढ़ के रास्ते में या कगार पर ही निर्मित हुए हैं। नदी किनारे बनी सभी नई रिहायशी बस्तियां बाढ़ के रास्तों पर ही स्थित हैं। ऐसे में नदी में आई बाढ़ और क्या कर सकती है।
बाढ़ के लिए सरकारें भी जिम्मेदारः
हाल के वर्षों में बिहार,असम उत्तराखंड, कश्मीर, केरल समेत देश के विभिन्न इलाकों में बाढ़ की त्रासदी का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। लचर प्रशासनिक प्रबंधन, नेताओं-अफसरों के भ्रष्टाचार, बिल्डरों के लालच और समाज की लापरवाही के कारण ही बाढ़ की समस्या फन फैलाते जा रही है। कारण तेज शहरीकरण और विकास की आपाधापी में जलनिकायों के रास्तों और संग्रहण क्षेत्र पर बस्तियां बसा दीं गई हैं। इसके पीछे का कारण सिर्फ इतना है कि बाढ़ के बाद होने वाले राहत कार्यों के लिए लाखों-करोड़ों रूपए का राहत फंड आवंटित किया जाता है। इस फंड में सरकारें, प्रशासनिक अफसर और स्वयंसेवी संगठन सभी अपना-अपना हिस्सा निकाल लेते हैं और इस तरह से बाढ़ कमाई का एक जरिया बन गई है। तभी बाढ़ की विभीषिका को कम करने की जगह राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप लगाते रहते हैं। लेकिन कोई भी बाढ़ के खतरे से बचने के लिए वास्तविक इंतजाम नहीं करता है। और हर साल बाढ़ आती है अपनी विभीषिका से आम लोगों को बर्बाद कर चली जाती है।
बाढ़ रोकने के उपायः
बाढ़ रोकने के लिए आज जरूरत है कि हम पर्यायवरण का सरंक्षण करें। जो चंद मुनाफाखोर अपने मुनाफे के लिए लगातार प्रकृति का विनाश करते जा रहे हैं, उनके ऊपर लगाम लगाएं। ऐसा करने पर ही हम आने वाले समय में बाढ़ की विभीषिका से बच पाएंगे। साथ ही मानसून के दौरान गंगा, ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियाँ जो हरबार अपना पैटर्न तोड़ती हैं, उनके व्यवहार को गहराई से समझकर सुरक्षात्मक उपाय किए जाने की भी आवश्यकता है। अब सरकारोंं को चाहिए कि वे नदियों पर बने बांध, बचाव नहर एवं बैराज आदि जो सदियों पुराने हैं, उनका सर्वेक्षण कर उनमें सुधार करे। छोटे जलग्रहण क्षेत्रों के लिये जलीय आँकड़ों पर नजर रखने, मिट्टी के छोटे बाँधों के मानकीकरण, अधिक बाढ़ वाले पानी का निपटान करने के लिये व्यवस्था और बेहतर वितरण प्रणालियों को विकसित करने की ओर अधिक ध्यान देने की भी आवश्यकता है। बाढ़-प्रबंध योजनाओं को एकीकृत दीर्घकालिक योजना के ढाँचे के अन्तर्गत और जहाँ उपयुक्त हो वहाँ सिंचाई, विद्युत एवं घरेलू जल आपूर्ति जैसी अन्य जल संसाधन विकास योजनाओं के साथ मिलाकर आयोजित किये जाने की भी आवश्यकता है। इससे बाढ़-नियंत्रण योजनाओं की कारगरता को बढ़ाया जा सकेगा तथा उनकी आर्थिक व्यवहार्यता में भी सुधार होगा। वहीं जिन नदियों की निचली धाराओं में सर्वाधिक एवं विनाशकारी बाढ़ आती थी, उन पर बड़े-बड़े बाँध बनाकर जलाशयों में वर्षा के पानी को रोकने की व्यवस्था कर कर भी बाढ़ को नियंत्रित किया जा सकता है। और समय आ गया है जब सभी को मिलकर इस आपदा से बचाव के रास्ते तलाशने और प्रभावी ढंग से उसे लागू करने पर भी जोर देना होगा।
(उपरोक्त आंकड़ें इंटरनेट के श्रोतों से जुटाए गए हैं)
मुकेश सिंह