एक दिन आऐगा
एक दिन आऐगा जब ऐहसास होगा
मैने अपनी आत्मा को मारा
परिस्थिती ऐसी भी नहीं थी
कि आत्मा की हत्या करता
पर मैं क्यो मजबूर हुआ
यह सवाल खड़ा करने वाला
कोई नहीं तुम खुद ही सवाली होगे
अपने बुरे अक्श का जीता जागता
सच्चा आईना होगे
कफन ओढे मन मे उस पल को याद कर
रोओगे, पछताओगे
जब तुम्हारे सामने करने को था सब कुछ
पर इकतियार किया
तुमने वह कुछ जो था गलत, जो टिका था
कर्म के विरूद्ध, धर्म के विरूद्ध,
संस्कार के विरूद्ध, न्याय के विरूद्ध
जवाब पाने को तरसोगें, तड़पोगें
घुट-घुट कर जिओगे
जिंदगी के अंध गलियो में
जिंदगी के कुछ अंतिम पल……
सुधारना चाहोगे गलतीयाँ और लौटा
लेना चाहोगे वे मुफलिसी के अच्छे दिन
पर बीता हुआ वो पल लौटा भी न पाओगे
खड़े हो खो कर जिस पल…