जिंदगी है बेवफा, मुझे जिंदगी से डर लगता है।
जाने कौन हो रहजन, आदमी से डर लगता है।
जाने कौन सा खुशी का पैगाम,जिंदगी में तूफां लाये,
गम से है याराना, अब खुशी से डर लगता है।
रुसवाईयाँ मिलेगी, तँन्हाईयाँ मिलेगी इस में,
हुस्न से तौबा खुदाया, आशिकी से डर लगता है।
अब के रकीबों ने भी दोस्ती का लिबास पहना है,
डर के हाथ मिलाते है के दोस्ती से डर लगता है।
तरक्की की राह में,काट डाले कितने नन्हें शजर,
बैठा हूँ दश्त में, इंसानी बस्ती से डर लगता है।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”