गुलामी
दो बच्चो की माँ थी मैं इस उम्र में पति को जाने क्या हुआ. शायद भायी नही मैं कभी और मुझे बच्चो के साथ अकेली छोड कर वो परदेस जा बसे. अब मैंने कैसे जीवन चलाया अपना और दोनो बच्चो का बस मैं ही जानती हूँ. मेहनत मजदूरी की कौन सा काम नही किया यहाँ तक के रात रात भूखी भी रही. बेटी बडी थी सो ब्याह की फिक्र. बेटा बडा लायक, सुशील, समझदार, पर किस्मत के आगे किसकी चलती है. ?
बेटी की शादी समपन्न परिवार में हुयी बहुत सुन्दर और धैर्यवान पति पाया उसने इससे अच्छा पति शायद किसी को मिले. बिटिया के आगे एक ना चलती उनकी. एक दिन अचानक बेटे की दुर्घटना में मौत कैसा पहाड टूटा था मुझ पर. क्या करती, होनी बलवान जो होती है.
घर का मकान नही जुटा पायी कभी. रहने लगी थी अकेली. सीख ही लिया था जीना. एक दिन दामाद जी आये थे मिलने और जिद पकड कर बैठ गये माँ हमारे साथ रहो ना. बेटी भी कहने लगी चलो ना माँ यहाँ तुम जी ना पाओगी अकेली. क्या करती, बहुत ना नुकर की पर बेटी, दामाद के आगे घुटने टेकने पडे.
*दो साल बाद *.
दामाद जी को नाश्ता करा दिया. और टीनू, मीनू भी नानी को बॉय बोलकर टिफिन लेकर चले गये आज दोपहर में कोफ्ता कढी ही खानी है नानी के हाथ की. बस अभी रसोई समेटी है. दरवाजे पर कोई है शायद. काम वाली चमकी ही होगी. देखती हूँ. लो आ गयी. आ री तेरा ही इंतजार कर रही थी मैं
माँजी मैं बस एक कप चाय पिला दो फिर देखो कैसे फटाफट काम करती हूँ. और बतियाती हूँ आपसे. चाय पीते पीते चमकी देखती रहती है यहाँ वहाँ बिटिया के कमरे में भी झाँक आयी. अरे माँजी. ? मेम साहब सो रही है अभी. ? बेटी देर तक सोती है आपकी.
माँजी एक बात कहुँ. कह ना पगली. क्या बात है. मैने कहा. कब तक “गुलामी ” करेंगी बिटिया की. ?? नही रे गुलामी कैसी दो रोटी मिल रही है इज्जत से. बस कट रही है जिन्दगी. तू भी ना. कहकर मैं तैयारी में लग गयी कोफ्ता कढी जो बनानी थी दोपहर के खाने में.
— रीना गोयल ( हरियाणा)