फूलों को चुनो
उम्र बीत जाएगी
और स्नेह की ये गागरी
प्राण, एक रोज रीत जायेगी ,
फूलों को चुनो।
न शूल से डरो
बीतती है उम्र और
ढल रहे हैं स्वप्न आज,
भूल को न तुम वरों,
नेहमय नयन में स्नेह झाँकता
एक बार के विलोपन में।
गीत की कड़ी सत्यमेव फूट जाएगी ।
बहार पालती रही जो उम्र को
और ये सजे किशोर स्वप्न,
झांकते रहे जो मौन
नेत्र के द्वार से
उन्हें दुलार लो प्रिये
राग के सुहाग से
सत्य मान लो कि ये
घड़ी बहार की दिनेक बीत जायेगी।
फूल से कहो कि शूल को दुलार ले
और भौंरे से कहो कि आरती उतार लें।
प्राण की बात मान लो,
कुछ नहीं एक सांस में ही
जिन्दगी की मुक्ति है ,
जिन्दगी का खेल है ।
— कालिका प्रसाद सेमवाल