मुक्तक/दोहा

श्रावण का सोमवार

धारा बह गई धार में, तीन सौ सत्तर आज।
पैंतीस ए खत्म हुई,चढ़ी आज परवाज।

पहले श्रावण सोम को, बम बम भोले गान।
चंद्रयान नभ को चला, ऊंची भरी उड़ान।

दूजै श्रावण सोम को,मिला खाक में पाक।
मुस्लिम बहिनें खुश हुईं, गायब  हुआ तलाक।

तीजे श्रावण सोम को, काशमीर आबाद।
पूरे जग खुशियां मने, मोदी है नाबाद।

चौथे श्रावण सोम को,क्या होगा सरकार।
तेरे मन की बात को,तू जाने करतार।

तांडव की मुद्रा खड़े,बम बम भोले नाथ।
रुंड मुंड माला गले, डमरू लेकर हाथ।

विषधर लिपटे बदन से, हाथ लिए त्रिशूल।
माथे चंद्र बिराजता,बदन लगाये धूल।

मृग छाला कटि बांधकर,करते भोले नृत्य।
नंदी शाही मोद में, बम बम भोले सत्य।

मिशन गुरुजी का सफल किया शाह ने आज।
अखंड भारत कर दिया, वाह वाह मोदी राज।

हरी सिंह महाराज को, गुरु ने किया तैयार।
हस्ताक्षर भी कर दिए, पर नेहरू धिक्कार।

देशद्रोही अब है दुखी, बंद हुए सब काज।
पता चल गया उन्हें अब, मोदी जी का राज।

प्रेम सिंह राजावत “प्रेम”

प्रेम सिंह "प्रेम"

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