रिमझिम पड़ी फुहारें
रिमझिम पड़े फुहार सुहानी,ऋतु वर्षा की आये ।
सँवर सँवर कर वृक्ष लताएं ,मन को रही रिझाये ।
घेरे में सागर की बाँहों ,सरिता है इठलाती ।
लहर-लहर बनकर हमजोली , झूम-झूम कर गाती ।
अवनी के शुभ आमंत्रण पर ,उमड़-घुमड़ घन आये ।
सँवर सँवर कर————-
दादुर ,हरि का नृत्य मदिर है, कोकिल गान अनोखा ।
ताप-उष्ण से जले हृदय पर ,शरद वायु का झोंखा ।
बहक रहा मादक मौसम भी ,लय -सुर -ताल मिलाये ।
सँवर सँवर कर————-
कारी बदरी ने वआँगन में, अनुपम छटा बिखेरी ।
चपल, चतुर बन लहक रही है,चित को चुरा चितेरी ।
नव कोंपल उभरे वसुधा में, हरित हृदय कर जाए ।
सँवर सँवर कर————–
चूनर धानी ओढ़ धरा भी , दुल्हन सी लगती है ।
शबनम के वो मोती चुनकर ,निज आँचल भरती है ।
दृश्य मनोहर ताक प्रकृति का ,हृदय हिलोरें खाए ।
सँवर सँवर कर————–
— रीना गोयल