मुस्कुराना सीखो
ना होगी चिंगारी
ना उठेगा धुआँ
मुहब्बत की फिजाँ होगी
और गूँजेगी वादियाँ।
जन्नत ही जन्नत है जहाँ
उसे पीछे रहना है कहाँ
तरक्की की रोशनी फैलेगी
खुशहाली आयेगी वहाँ।
जंजीर से जकड़ी थी जहाँ
लंबी अवधि दहशत वहाँ
अब जाकर मिली आजादी
मिलकर सभी बस जाओ वहाँ ।
अब न बलिदान होगा वहाँ
ना ही आतंक का साया पड़ेगा वहाँ
अलगाव तो खुद विखर जाएँगे यहाँ
तुम अगर नफरत मिटाकर
मुस्कुराना सीख लो यहाँ।
हिन्द का सिर रहा
सदा लहू से भरा
अब केसर और तिरंगा होगा वहाँ
पूरे कश्मीर में शांति होगी
आशा करता सारा जहाँ।
— आशुतोष