रक्षाबंधन भाई-बहन के आपसी अटूट प्रेम का बंधन
भारतीय संस्कृति में त्यौहारों व पर्वो, उत्सवों का आदिकाल से महत्व रहा है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां मनाये जाने वाले सभी पर्व, समाज मे मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम एकता एवं सद्भावना को बढाते है। भारत में त्योहारों व उत्सवों का संबंध हमेशा से ही किसी जाति, धर्म, भाषा या किसी क्षेत्र विशेष से न होकर समभाव का रहा है।
हम सभी भारतवासी इस बात से परिचित है कि भारत एक बहुआयामी कलाओं एवं संस्कृतियों का देश है। इसकी अक्षुण्ण संस्कृति की मूल पहचान है इसकी गौरवशाली परम्पराएं तथा जीवन में एक नवीन चेतना, नई ऊर्जा एवं उल्लास को संचारित करते इसके वर्षभर के तीज-त्यौहार। यूं तो वर्ष भर के सभी त्योंहार अपनी विशेष पहचान एवं महत्व रखते है और इनके पीछे कोई न कोई वैदिक, पौराणिक एतिहासिक महत्व के साथ वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक आधार भी निहित रहता है ।
हम बात करे श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाए जाने वाले भाई-बहन के अटूट प्रेम के पर्व ‘रक्षाबंधन’ की जो सम्बंधों प्रगाढ़ता करने वाला और भाई-बहन के पवित्र प्रेम को ‘ज्वार’ की सीमा तक ले जाने वाला यह केवल एक पर्व या सामान्य त्योंहार ना रहकर स्वयं ही ‘महापर्व’ या कहें त्योंहार का राजा है। वैसे भी होली-दीवाली की तरह इस पर्व त्योहार को केवल सनातन धर्मी या हिन्दू नहीं बल्कि सभी धर्मावलंबी भारतवासी बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते आ रहे है।
रक्षाबंधन और श्रावणी पूर्णिमा ये दो अलग-अलग पर्व है, जो उपासना और संकल्प का अद्भुत समन्वय है और एक ही दिन मनाए जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि श्रावणी के दिन पवित्र सरोवर या नदी में स्नान करने के पश्चात सूर्यदेव को अर्घ्य देना इस विधान का आवश्यक अंग है। गावों के आसपास नदी ना होने की स्थिति में कुएं-बावड़ी पर आराधना की जाती है। इस दिन पंडित लोग पुराने जनेऊ का त्याग कर नया धारण करते है जो आज भी जारी है और पूजा-पाठ की इस पूरी क्रिया को ‘श्रावणी कर्म’ कहा जाता है। दक्षिण भारत के महाराष्ट्र व अन्य जगह पर इस दिन जल देवता वरूण की आराधना की जाती है। इस संबंध मे ऐसी मान्यता भी है कि ‘श्रवण’ नक्षत्र की वजह से आदिकाल में श्रावणी पूर्णिमा का नामकरण संस्कार हुआ। अश्विनी से रेवती तक ज्योतिष के सत्ताईस नक्षत्रों में ‘श्रवण’ बाईसवां है जिसका स्वामी चंद्रमा है। ऐसा कहा जाता है कि श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन नक्षत्र हो तो अत्यंत सुखद व फलदायी माना गया है। इसलिए श्रावण मास की अंतिम तिथि वाली श्रवण नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा को श्रावणी कहते हैं और इस दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।
■> रक्षाबंधन पर्व मनाने की विधि :-
रक्षाबंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान आदि निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान की पूजा अर्चना करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुमकुम एवं दीप जलाकर थाली सजाते है। इस थाली में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते है फिर बहनें भाईयों के ललाट पर कुमकुम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं। बहन भाई की दाई कलाई पर राखी बांधती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती है। राखी बंधवाने के बाद भाई, बहन को रक्षा का आर्शीवाद एवं उपहार देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लंबी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती हैं।
देश भर में बड़े हर्षोल्लास से यह त्योहार मनाया जा रहा है, यह बात बहुत ही प्रसन्नतादायक है कि आज भी भाई-बहन का प्रेम-स्नेह, प्यार हमारे भारतवर्ष में बड़ा ही महत्व रखता है और भाई अपनी बहनों की खातिर प्राण भी न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं । यहीं इस त्यौहार की विशेषता है और यही इसकी सुन्दरता भी है। भाई-बहन के पावन प्रेम को यह त्यौहार मजबूती देता है और साथ ही एक नया आयाम भी। सभी बहनों एवं भाईयों को हार्दिक शुभकामनाओ के साथ ।
जय हिंद । जय भारत ।।
— रावत गर्ग उण्डू