छन्द मुक्त गीत
पनघट पर नित नन्द का छौना मोहे छेड़ के जावै री
मार कंकरिया मटकी फोरि, वो तो खूब सतावै री ।।
बीच बजरिया अँखिया मारे ,पकड़ कलइया मोरी
बनता कैसा ढीट तनिक भी नही लजावै री ।
घर-घर चोरी माखन करके खायो और खिंडायो
जग का नाथ कहायो गोकुल गैंया चरावै री ।
ऐसो है चितचोर लिया है मेरा चित चुराय
बंसी मधुर बजाय पायलिया छन-छनकावै री ।
सखियों सँग बरजोरि करे कभी छेड़त गालों को
नैनन रहा मटकाय ,श्याम क्यों बाज न आवै री ।
वृंदावन की गली गली में लीला करता श्याम
राधा का मनमीत है राधेश्याम कहावै री ।
छौना – बालक,बच्चा
बजरिया -बाजार
कंकरिया-मिट्टी का ढेला
चित्तचोर-मन का चैन चुराने वाला
बरजोरि-छेड़-छाड़
कहावै-कहलाना
— रीना गोयल