ए चाँद
ए चाँद सच सच बताना
तुम इतने सुंदर क्यो हो?
पता है मै जब भी उदास होती हूँ
अपने खिड़कियों से एक टक तुम्हें निहारती हूँ
तुम्हे देखने मे जो सुकून मिलता है
सच मे ऐसा सुकून कहीं नहीं मिलता
कुछ पल के लिए ऐसा लगता है
जैसे तुम्हारे तरह ही कोई
मेरे जीवन मे आने वाला है
जो अपना चाँदनी बिखेर
कर देना चाहता है चांदनीमय
क्या ये ख्वाब है या हकीकत?
ये तो तुम्ही बता सकते हो
जब बंद पलके करती हूँ तो
उसे अपने साथ पाती हूँ
और मन ही मन मुस्कुराती हूँ
ये कैसा साथ?
जो पलक खोलते ही कही दूर हो जाता है
और बस एक अहसास होता है कि
कहीं न कहीं वह मेरे करीब ही है।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’