लघुकथा

कुत्ता कहीं का…

वह बार-बार “हट! हट!” करती जा रही थी, लेकिन वह लगातार उसके पीछे-पीछे चल रहा था । कालोनी की इस सड़क पर काफी अँधेरा था, सो अब तो राधिका को डर लगने लगा था । उसने अपनी चाल तेज कर दी। तभी कुत्ते ने उसके आँचल के छोर को अपने मुँह में भर लिया। राधिका की चीख निकल गयी लेकिन तब तक घर आ गया था। उसने झपट कर गेट के अंदर घुस कर गेट बंद कर दिया ओर चैन की साँस ली |

“उफ़ कुत्ता कहीं का…! इनके कारण तो रात के खाने के बाद सैर भी नहीं कर सकते ।”

रोज तो वे दोनों पति पत्नी एक साथ ही खाने के बाद कॉलोनी का एक चक्कर लगाने निकलते हैं, लेकिन आज अजय किसी काम से शहर से बाहर गए हुए हैं, देर तक लौटेंगे, सो वह घरेलू नौकर को रसोई साफ कर सोने जाने का आदेश दे, चाबी ले अकेले ही निकल गयी। लेकिन सत्यानाश जाये इस कुत्ते का ! एक चक्कर भी पूरा नहीं काटने दिया। अभी भी उचक-उचक कर लोहे के गेट से अंदर घुसने की नाकाम कोशिश कर रहा है। तभी राधिका को ध्यान आया कि उसकी कोठी के अहाते की बायीं दीवार कुछ टूटी हुई है, यह कहीं वहाँ से न आ जाये, सो उसने जल्दी से हाथ में पकड़ी चाबी से मुख्य द्वार खोला और घर में प्रविष्ट हो गयी । लेकिन वह अभी दरवाज़ा बंद भी नहीं कर पायी थी कि दो जोड़ी हाथों ने उसका मुँह बंद करने के साथ-साथ उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया । उसकी चीख निकलते निकलते उसके गले में ही घुट गयी ।अपने को छुड़ाने की असफल कोशिश के दौरान उसने देखा कि हमलावर और कोई नहीं बल्कि उसका विश्वासपात्र नौकर और उसका साथी ही था । साथी के हाथ में एक बड़ा सा छुरा था । इससे पहले वह कुछ समझ पाती, दोनों उसकी गर्दन पर छुरा रख, धकेलते हुए बैडरूम की ओर ले चले ।

“मम्मी जी ! जान प्यारी है, तो अपनी अलमारी की चाबी हमें सौंप दो, कसम से! हम आपको कुछ नहीं कहेंगे, आखिर आपका नमक खाया है ।” कहते कहते वह ढीठता से मुस्कुराने लगा ।

“कमीने …..,” इसके आगे राधिका कुछ कह पाती कि छुरे की नोक के बढ़े हुए दबाव ने उसका मुँह बंद कर दिया । विवश होकर उसने चाबी उनके हवाले कर दी । अब नौकर जहाँ अलमारी खोलने लगा, वहीँ उसका साथी उसकी गर्दन से छुरा लगाए खड़ा रहा, लेकिन उसका ध्यान अलमारी की ओर  होने के कारण छुरे की नोक गर्दन पर चुभनी बंद हो गयी थी ।

तभी अचानक वही कुत्ता दौड़ता हुआ आया और छुरा पकड़े खड़े साथी पर टूट पड़ा। इस अप्रत्याशित हमले से उसके हाथ से छुरा छूट कर सामने पलंग पर गिरा जिसे तुरंत राधिका ने उठा लिया । कुत्ता नौकर के साथी को काट कर नौकर पर झपटा । अपराध की दुनिया में नए-नए दाखिल हुए ये दोनों खिलाड़ी सर पर पाँव रख बाहर भागे और पीछे पीछे कुत्ता भी । राधिका ने झपट कर मुख्य द्वार बंद किया और जल्दी-जल्दी फोन घुमाने लगी, लेकिन डर से थर्राता घर ये सवाल कर रहा था- “कुत्ता कौन ?”

— शोभना श्याम

शोभना श्याम

जन्मतिथि - 18 जनवरी, मेरठ शिक्षा - एम.ए.(हिंदी), बी.एड. व्यवसाय – कला( पेंटिंग ) अध्यापन एवं अनुवाद प्रकाशित पुस्तकें- काव्य संग्रह-- ‘सुबह की पलकों पर’ हिंदी अकादमी से प्रकाशित , लघुकथा संग्रह -- ‘बिखरने से पहले तथा पकना एक कहानी का देश के विभिन्न शहरों तथा लन्दन ,थाईलैंड, कम्बोडिया,ताशकंद, आदि देशों के काव्य-मंचों और गोष्ठियों में कविता पाठ एवं मंच संचालन आकाशवाणी दिल्ली से कविताओं कहानियों तथा वार्ताओं का नियमित प्रसारण विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथा ,कहानी , मुक्त छंद कविता , गीत , गजल , दोहा ,माहिया , हाइकू , संस्मरण , आलेख आदि विभिन्न पुरुस्कार एवं सम्मान मो. –9953235840 ईमेल - [email protected]