महर्षि गर्ग ने किया श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार
कृष्ण से जुड़ी इतनी घटनाएं है कि जिन्हे समेट पाना भी असंभव है फिर भी महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि द्वारा किया गया श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार व भविष्य वर्णन का वृतांत है जिसमे श्री कृष्ण जी के विराट रूप को जान सकते है।
महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि ने ही भगवान द्वारिकाधीश श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार कर उनके भविष्य का वर्णन किया था। गर्ग ऋषि या गर्गाचार्य यदु राजवंश के कुल गुरू थे, इनका कुल ब्रह्मण क्षत्रिय था। इन्होंने घोर तपस्या कर वेद और पुराणों का महान ज्ञान प्राप्त किया था। अठारह वेदांग ज्योतिष शास्त्रों के प्रवर्तकों में भगवान गर्गाचार्य जी आद्य गुरु सिध्द हुए।
महर्षि गर्ग मुनि न केवल ज्योतिष शास्त्र के आचार्य थे, वरन् चार वेद, अठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद सहित षट् दर्शन के पारगड्त महान आचार्य रहे थे एवं वेदागं के भी पूर्ण आचार्य थे। 88 हजार ऋषियों में एकदम में सभी सद्गुण एक साथ केवल “गर्गाचार्य” जी में होने से वे सर्व ब्रह्मर्षियों में वें भगवान “गुरू” कहलाये। वे ही भगवान गर्गाचार्य द्वारिका धाम के राजा भगवान वासुदेव श्री कृष्ण के राजगुरु पद से सुशोभित हुए। इसी वजह से भगवान गर्गाचार्य के वंशज “गुरू ब्राह्मण” कहलाते है। इन्होंने ज्योतिष और भगवान श्री कृष्ण पर आधारित “श्री गर्ग संहिता” नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना की थी। वासुदेव ने अपने बच्चे का नामकरण संस्कार व भविष्य जानने हेतु महामुनि गर्ग ऋषि से विनती की थी, इसी कारण यज्ञोपवीत संस्कार कराने के लिए महर्षि गर्ग नंद महाराज के घर पधारे थे। ऋषि गर्ग जानते थे कि कंस देवकी के आठवें पुत्र की तलाश में और अगर नामकरण संस्कार भव्यता के साथ किया तो नंद परिवार संकट में पड़ सकता है इसलिए बलराम और श्री कृष्ण के धार्मिक अनुष्ठान का विशेष समारोह महल के अंदर किया गया था ताकि कंस का आक्रमण न हो सके। नामकरण समारोह बिना किसी को बताये किया गया था। महर्षि गर्ग नें रोहिणी के बेटे को विशाल ताकत के लिए बलदेव और दूसरों की उत्कृष्टता बढाने के लिए राम नाम से घोषित किया गया।
यशोदा के पुत्र नाम रखते समय महामुनि गर्ग दुविधा में पड़ गए थे क्योंकि वह अपनी लीलाओं के कारण कई नामों से जाना जाने वाला था। उन्होंने नंद महाराज को बताया कि आपके बेटे का पहले कई सारे रंग में जन्म हो चुका है और अब श्याम वर्ण में जन्म लिया है। इनके बाद महर्षि गर्ग ने काले गहरे रंग के होने कारण “कृष्ण” नाम दिया। महर्षि गर्ग जी ज्योतिष फलित भविष्य सुनाते कहा नंदराज, गोपराज, चित्रसेन व समस्त गोपजन सुनें- ‘आपका यह पुत्र अपने नाम के अनुरूप ही होगा। यह अपनी देह और मन के सौन्दर्य से सबको मोह लेगा। एक अपूर्व, नूतन योग का -प्रेमयोग का यह निर्माण करेगा। जितने स्पष्ट रूप में आप प्रतिदिन भिन्न-भिन्न रंगो की गायों को देखते हैं, उतने ही स्पष्ट रूप से यह सत्य को देखता है सभी अंगो से। यह स्वयं अपने निकष के अनुसार, अपनी ‘कृष्णशैली’ से प्रत्येक व्यक्ति के साथ व्यवहार करेगा-कोई भी इसे जान लेने का व्यर्थ प्रयास न करे…।’ ‘विशुद्ध प्रेम से आप सबके साथ इस प्रकार घुल-मिल जाएगा कि आप उसे कभी भूल नहीं पाएंगे। वह आपको प्रेम योग की द्विव्य दीक्षा देगा। किन्तु…किन्तु आपके गोकुल में वह अधिक समय तक रहेगा नहीं। आपका नित्य प्रिय, निर्मल, प्रेमिल साहचर्य आपको अधिक समय तक प्राप्त नहीं होगा।’
महामुनि महर्षि गर्ग ऋषि आंखे मूंदकर क्षणभर चुप हो गए। उन्होंने दीर्घ श्वास लिया। अज्ञात के सुदूर पड़ाव पर पहुंचे ध्यानस्थित मुनिवर गर्ग खनखनाते शब्द पुनः गूंजने लगे और गोपीसभा के कक्ष की भित्तियों पर रोमांच खड़े करने लगे- ‘यह सुपुत्र न्याय की, धर्म की रक्षा के लिए निरंतर कर्मरत रहेगा। न्यासी होकर भी सदा अन्याय सहते हुए एक विस्थापित किंतु पराक्रमी राजकुल को यह पूर्ण समर्थन देगा। उनको न्याय दिलाने हेतु यह ‘न भूतो न भविष्यति’ ऐसा महायुद्ध करवाएगा, जिसे संपूर्ण विश्व कभी भूल नही पाएगा। इनको अत्यंत परिश्रम – साध्य चौदह विद्याएं अत्यंत सरलता से प्राप्त होगी।जिस एक-एक कला को सिखने के लिए कलाकार पूरा जीवन बिताते हैं, उन चौंसठ कलाओं इसका पूर्ण अधिकार होगा। यूग-युगों तक यह अपने गुरू और माताओं के नाम से पहचाना जाएगा। यह सुपुत्र योगयोगेश्वर है सभी अर्थों में विभूतिपुरूष है, महान पुरूष है, केवल अतुलनीय, अद्वितीय हैं। यह जल में स्थित कमलदल की भांति अलिप्त ही रहेगा इसीलिए यह आपको दैवी चमत्कारी लगेगा। जीवन में कृष्ण, श्याम, गोपाल, मोहन, मुरारी, मधुसूदन इन सीढियों को पार करता हुआ यह “वासुदेव” के अत्युच्च स्थान पर पहुंच जाएगा। लाखों लोगों को यह जीवन का अर्थ क्या है और उसे कैसे जिया जाता है, यह सहज सरल भाषा मे बता जाएगाऔर नित्य जीवन में उसी प्रकार आचरण करेगा।’ ‘जीवन का पहला श्वास इसने गोपनायक नंद के सुरक्षित आवास में लिया है, किंतु यह ‘वासुदेव’ देह-विसर्जन करेगा एक घोर अरण्य में-अश्वत्थ वृक्ष की घनी छाया में, खुले आकाश के नीचे-अत्यंत सामान्य रीति से, पूर्ण एकांत में! इति शुभं भवतु।’
महामुनि महर्षि गर्ग इस प्रकार स्तब्ध-भावमग्न हो गए, मानो कोई भव्य-दिव्य घटना उनकी आंखों के समक्ष साकार हो रही हो! वो अपने आप में खो गए थे। हाथ जोड़कर, सिर झूकाते हुए वे हल्के से बुदबुदाए “कृष्णार्पममस्तु!” ।
श्री कृष्ण, एक ऐसा नाम जिसके कार्य और उदेश्य को स्वयं माता यशोदा भी न समझ सकी। उनकी लीलाएं अप्रतिम थी, उनके विचार भविष्यपरक थे। सबको आकर्षित करने वाले श्री कृष्ण जी के जन्मोत्सव एवं महामुनि गर्ग ऋषि पंचमी पर हार्दिक शुभकामनाऐ । जय श्री कृष्णा ।।
— नायब सुबेदार रावत गर्ग उण्डू