पुनर्जन्म न मानने वालों से प्रश्न
ओ३म्
वैदिक मान्यता है कि जीवात्मा अनादि, नित्य, अनुत्पन्न, अजर व अमर है। यदि जीवात्मा का यह जन्म हुआ है तो इससे पूर्व भी यह बिना जन्म लिये नहीं रह सकता था। जीवात्मा को जन्म परमात्मा से मिलता है जिसका कारण जीवात्मा के पूर्वजन्म व उससे पहले के जन्मों के वह कर्म होते हैं जिन्हें जीवात्मा ने मनुष्य योनि मे किया तो होता है परन्तु उनका फल भोगना शेष रहता है। जीवात्मा सहित ब्रह्माण्ड में एक सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान तथा सृष्टिकर्ता विद्यमान है जो कि अनादि, अजन्मा, अनन्त, नित्य, अविनाशी व अमर है। ईश्वर जीवात्माओं के माता, पिता, आचार्य, राजा व न्यायाधीश है। वह जीवों के पुण्य व पाप कर्मोें के सुख व दुःखरूपी फलों के भोग के लिये इस सृष्टि को बनाता है और जीवों को सृष्टि व पृथिवी पर जन्म देकर कर्मों का भोग कराता है। अनादि काल से जीवात्मा जन्म व मृत्यु के चक्र में फंसा हुआ है। पाप कर्मों को त्याग कर, ईश्वर व जीवात्मा के स्वरूप को यथार्थ रूप में जानकर तथा सद्कर्मों यथा ईश्वर की उपासना, अग्निहोत्र यज्ञ, परोपकार व दान आदि अनेक वेद और शास्त्र विहित कर्मों को करने से जीवात्मा मोक्ष को प्राप्त होता है। अतः जीवात्मा का जन्म व मरण एक सनातन प्रक्रिया है जिसका न आदि है और न ही अन्त। हम इसके अनुसार जन्म लेते आ रहे हैं व लेते रहेंगे। मनुष्यादि सभी प्राणियों की जन्म के बाद मृत्यु होती है और उसके बाद पुनः जन्म होता है। यह क्रिया मोक्ष प्राप्ति तक चलती रहती है। मोक्ष के बाद भी जीवात्मा का जन्म होता है परन्तु मोक्ष की अवधि 31 नील 10 खरब 40 अरब वर्षों की होती है।
पुनर्जन्म न मानने वालों पर हम आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान पं0 गंगाप्रसाद उपाध्याय जी के चार आक्षेप दे रहे हैं। वह आक्षेप निम्न है।
(1) प्राणियों की प्रकृतियों और परिस्थितियों की असमानता का क्या कारण है? क्या कारण है कि कोई-कोई आठ-आठ वर्ष के बालक प्रसिद्ध गवैये होते हैं और किसी-किसी को जीवन भर गाना आता ही नहीं है? अन्य योग्यताओं की भी यही स्थिति है।
(2) यदि पुनर्जन्म नहीं होता तो ऐसे प्राणियों की उत्पत्ति क्यों हुई जो एक या दो दिन के होकर या गर्भ में ही मर गए? उनके जीवन का क्या प्रयोजन है? इनको नरक मिलेगा तो क्यों? और स्वर्ग मिलेगा तो क्यों? क्योंकि जिस अवस्था में वे उत्पन्न हुए उसमें वे कुछ उत्तरदायित्व-सम्बन्धी काम नहीं कर सकते थे।
(3) जब जीवात्मा एक असंयुक्त वस्तु है जिसके टुकड़े-टुकड़े नहीं किये जा सकते, तो वह सदा रहेगा–कभी नष्ट नहीं हो सकता। जीवात्मा यदि आवागमन (पुनर्जन्म) के चक्कर में नहीं आता तो उसकी इस अनन्त जीवन में से केवल दो-चार या सौ-पचास वर्ष का ही काम करने का अवसर क्यों दिया गया?
(4) ईसाई और मुसलमान मानते हैं कि प्रलय के दिन मुर्दे कब्रों में से उठेंगे। प्रश्न यह है कि इनके शरीर उठेंगे या जीवात्मा, या दोनों? यदि कहो कि जीवात्मा (रूहें) उठेंगी और उनको नए शरीर मिलेंगे तो यह एक प्रकार का पुनर्जन्म होगा। यदि कहो कि पुराने शरीरों के साथ उठेंगे तो वे शरीर कहां से आएंगे? क्योंकि शरीर गलकर या जलकर नष्ट हो जाते हैं। कल्पना कीजिए कि जैद एक मनुष्य था। वह मर गया। उसकी कब्र पर घास उगी थी। यह घास उसके शरीर के अंगों का परिवर्तित रूप था। इस घास को बकरी ने खाया। बकरी का मांस बकर नामी दूसरे मनुष्य ने खाया, इस प्रकार जैद के शरीर के अवयव बकर के शरीर के अवयव हो गए। प्रलय के दिन जब जैद और बकर दोनों की रूहें उठेंगी तो किस शरीर में, प्रत्येक अंग के लिए झगड़ा होगा? दूसरा प्रश्न यह है कि रूहें प्रलय तक कहां रहेंगी और क्या किया करेंगी? जो लोग समझते हैं कि कब्र में आत्माएं रहती हैं उनको यह पता नहीं कि जब तक आत्मा शरीर में रहती है तब तक शरीर को मरा हुआ नहीं कह सकते। ईसाई लोग ईसा को मरा हुआ नहीं कह सकते। ईसाई लोग ईसा को मरकर गाड़ा जाना और फिर तीसरे दिन कब्र से उठना मानते हैं। वे इतना भी विचार नहीं करते कि मरकर जीव शरीर से अलग हो जाता है। कब्र में लाश रहती है, आत्मा नहीं रहता, फिर कब्र से कोई कैसे उठ सकता है? यह तो सम्भव है कि सूली देते समय ईसा की मृत्यु न हुई हो और कब्र में उसे धोखे से मूच्र्छित गाड़ दिया हो और वह अच्छा होकर जी उठा हो। परन्तु ईसाई ऐसा नहीं मानते।
वस्तुतः बिना पुनर्जन्म माने काम चलता ही नहीं । यदि पुनर्जन्म नहीं तो प्रलय तक जीव क्या करते रहेंगे? क्या ईश्वर ने जीवों को निकम्मा पड़े रहने के लिए बनाया है?
उपर्युक्त प्रश्न कई दशकों पूर्व पं0 गंगाप्रसाद उपाध्याय जी ने सभी मत एवं सम्प्रदायों के लोगों से पूछे थे परन्तु आज तक कोई इनका तर्क एवं युक्तिसंगत उत्तर नहीं दे पाया। पुनर्जन्म के सम्बन्ध में अनेक प्रमाण है परन्तु आज हमारा प्रयोजन पुनर्जन्म विषयक उपर्युक्त प्रश्नों को प्रस्तुत करना ही है जिनके उत्तर किसी के पास नहीं है। इन प्रश्नों का उत्तर न मिलने से पुनर्जन्म सिद्ध हो जाता है। अतः हमें पुनर्जन्म को मानना चाहिये और श्रेष्ठ कर्मों को करके अपने वर्तमान जीवन सहित भावी जन्म को भी सुधारना व सुखी बनाना चाहिये। ओ३म् शम्।
–मनमोहन कुमार आर्य